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________________ एस धम्मो सनंतनो उसी व्यक्ति को तुम गुरु जानना, जो तुम्हारे बावजूद तुम्हें ठीक लगने लगे। गुरु का इतना ही अर्थ होता है कि तुम तो इनकार ही करना चाहते थे, लेकिन इनकार कर न पाए। तुम्हारा पूरा मन कहता था कि भागो यहां से, यह भी कहां की बातों में पड़ गए हो, लेकिन फिर किसी चीज ने अटका लिया। उलझ गए, रुक गए। भागना चाहकर न भाग सके। ऐसा कोई व्यक्ति मिल जाए तो जानना कि गुरु मिल गया है, जिससे भागकर भी न भाग सके। जिससे छुड़ाने की अपने को सब चेष्टा की और सब चेष्टा व्यर्थ हो गयी। जिसके विरोध में सब सोचा, लेकिन कुछ कांम न आया। सब सोचा- विचारा टूट-टूट गया और जिसकी धारा तुम्हें खींचती ही गयी, बुलाती ही गयी। जिसकी आवाज तुम्हारे भीतर के कोलाहल को पार करके तुम्हारे भीतर आंतरिक केंद्र तक पहुंचने लगी। तुम्हारे कोलाहल को पार करके भी जिसका स्वर - संगीत सुनायी पड़ने लगा - यद्यपि कठिनाई से, क्योंकि कोलाहल है, लेकिन जिसका संगीत सुनने को मजबूर होना पड़ा। जिसके चरणों में तुम अपने बावजूद झुके, वही गुरु है। जिसके चरणों में तुम सरलता से झुक गए, तुम्हें कोई अड़चन न आयी, वह गुरु नहीं है। वह तुम्हारी मान्यताओं का परिपोषक होगा। वह तुम्हारी धारणाओं का परिपोषक होगा। वह पुजारी होगा, पंडित होगा, लेकिन गुरु नहीं । तुम जैसा मानते थे वैसा ही वह भी मानता है, तो तुम झुक गए। तुमसे ज्यादा जानता है, लेकिन तुमसे ज्यादा उसका अस्तित्व नहीं है। शास्त्र उसने ज्यादा पढ़े हैं, तर्क ज्यादा है, बुद्धिमान ज्यादा है, मगर है वहीं जहां तुम हो और तुम जैसा ही है। मुसलमान मौलवी के सामने झुक जाता है। हिंदू ब्राह्मण के सामने झुक जाता है। जैन जैन मुनि के सामने झुक जाता है। यह झुकना कोई गुरु का पा लेना नहीं है। गुरु की तो पहचान ही यही है, जिसके सामने तुम्हें अपने बावजूद झुकना पड़े। तुम नहीं झुकना चाहते थे, लेकिन अवश, कोई झुका गया। एक झोंका आया और तुम्हें झुक जाना पड़ा। पूर्णा ने किसी तरह भोजन कराया। भोजनोपरांत भगवान ने उससे कहा, पूर्णे, क्यों तू मेरे भिक्षुओं की निंदा करती है ? वह बोली, भंते, मैं और निंदा! नहीं-नहीं, कभी नहीं । मैं क्यों निंदा करूंगी ? भगवान ने कहा, रात की सोच । रात तूने क्या सोचा था ? पूर्णा शर्मिंदा हुई और फिर उसने सारी बात कह सुनायी । शास्ता ने उससे कहा, पूर्णा, तू अपने दुख से नहीं सोती थी, मेरे भिक्षु आनंद के कारण जागते थे । तुम्हें पता है कि कभी-कभी दुख की उत्तेजना में तुम नहीं सो पाते और कभी-कभी आनंद की उत्तेजना - अगर तुम्हारे जीवन में एकाध क्षण भी ऐसा आया है कि जब तुम आनंदित थे, पुलकित थे, तो क्या तुमने नहीं पाया है कि नींद असंभव हो गयी ? जो आनंदित है, वह सोना भूल जाएगा। जो दुखी है, वह सोना चाहे भी तो भी सो न सकेगा; और जो आनंदित है, वह सोना भूल जाएगा। 150
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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