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एस धम्मो सनंतनो
के कारण नहीं सोते थे। नींद और नींद में भेद है पूणे, और जागरण और जागरण में भी। यह नया जागना सीख, पागल, पुराना जागना कुछ बहुत जागना नहीं है। सोए-सोए तो सब गंवाया ही गंवाया, अब कुछ कमा भी ले। और तब उन्होंने यह गाथा कही
सदा जागरमानानं अहोरत्तानुसिक्खिनं । निब्बानं अधिमुत्तानं अत्थं गच्छन्ति आसवा ।।
'जो सदा जागरूक रहते हैं और दिन-रात सीखते रहते हैं तथा निर्वाण ही जिनका एकमात्र उद्देश्य है, उनके ही आश्रव नष्ट होते हैं।'
पहले तो इस कथा को ठीक से समझ लें।
पहली बात, हम दूसरों के संबंध में वही सोचते हैं जो हम अपने संबंध में जानते हैं। स्वाभाविक भी है। और तो हमारे पास नापने का कोई मापदंड भी नहीं। तो चोर सारे संसार को चोर की तरह देखता है। और साधु खोजता भी है तो असाधु को नहीं खोज पाता। क्रोधी सारे संसार में क्रोधी ही देखता है और बेईमान बेईमान ही देखता है। क्योंकि हम जो देखते हैं, वह हमारे दृष्टिकोण का ही प्रतिफलन है।
ऐसा समझो कि जैसे जगत तो दर्पण है, हम अपना ही चेहरा देख लेते हैं। हर चेहरे में अपना ही चेहरा देख लेते हैं। दूसरे का चेहरा देखने की कुशलता, दूसरे का चेहरा जैसा है वैसा देखने की कुशलता तो केवल जागरूक पुरुषों में हो सकती है। सोए-सोए, नींद से भरे, बेहोश हम देखना भी चाहें दूसरे का चेहरा तो हम देख नहीं सकते। हमारी आंखें धारणाओं से बंधी हैं। और हमारी आंखों पर बड़ा धुआं है। ___ अब यह स्त्री अपने प्रेमी की कामातुर होकर प्रतीक्षा कर रही है। यह जानती है कि आधी रात जागने का क्या कारण है। ये भिक्षु क्यों जाग रहे हैं? इसे तो कभी सपने में भी खयाल न आया होगा कि जागने का कोई और कारण भी हो सकता है। ये क्यों जाग रहे हैं? ये भी जरूर मेरी तरह किसी उलझन में पड़े हैं, सो नहीं पा रहे, इनको भी कोई चिंता पकड़े हुए है। कोई बेचैनी इनके ऊपर भी सवार है। कोई भूत इन्हें भी सता रहा है, जैसे मुझे सता रहा है। तो सोचा उसने, ये सब पाखंडी, अरे ढोंगी, भ्रष्ट! ___ खयाल रखना, जब तुम दूसरे के संबंध में कोई निर्णय लो तो तुम अपने संबंध में खबर देते हो। तुम जो निर्णय दूसरे के संबंध में लेते हो, वह दूसरे के संबंध में सही हो न हो, तुम्हारे संबंध में निश्चित ही सही होता है। दूसरे के संबंध में निर्णय लेने से सावधान रहना। लेना ही मत।
इसलिए जीसस ने कहा, जज यी नाट, दूसरे के संबंध में न्यायाधीश ही मत बनो। तुम हो कौन! दूसरे के भीतर क्या घट रहा है, तुम्हें कहां पता! तुम्हें अपने भीतर
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