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________________ एस धम्मो सनंतनो विनम्रता उसका इलाज है। लेकिन, बुद्ध ने कहा, पूरा दुख दूर नहीं हुआ। क्योंकि करुणा तेरी अभी जाग्रत करुणा नहीं। ऐसा तूने किया, लेकिन सोए-सोए किया। अभी इसमें भी थोड़ा अहंकार बचा है। थोड़ा सा अहंकार कि देखो, कितना बड़ा काम कर रही हूं। कोई नहीं कर सका कपिलवस्तु में, वह मैं कर रही हूं। अभी इसमें एक शुभ अहंकार, जिसको कृष्णमूर्ति कहते हैं—पायस इगोइजम, एक पवित्र अहंकार। पर अहंकार तो अहंकार है, चाहे कितना ही पवित्र हो। जहर तो जहर है, चाहे कितना ही शुद्ध हो। असलियत तो बात यह है कि जितना शुद्ध हो उतना ही खतरनाक होगा। अशुद्ध जहर में उतना खतरा नहीं है। मुल्ला नसरुद्दीन मरना चाहता था। जहर लाकर पीकर सो गया। सुबह बड़ा हैरान हुआ जब दूध वाले की आवाज सुनायी पड़ने लगी; उसने कहा, हद्द हो गयी, क्या यहां मरकर भी दूध वाले आते हैं ! और जब उसका बेटा बस्ता लिए उसके पास से निकला, उसने धीरे से आंख खोलकर देखी; उसने कहा, हद्द हो गयी, क्या यह बेटा भी मेरे साथ ही आ गया और स्कूल जा रहा है! और जब उसने पत्नी की आवाज सुनी तब तो वह चौंककर बैठ गया, उसने कहा, यह नहीं हो सकता! क्योंकि जिससे बचने को मैं मर रहा था, अगर वह भी साथ आ गयी तो मरने का फायदा क्या! आंख खोलकर सब देखा तो अपना ही कमरा है। बड़ा नाराज हुआ, भागा गया दुकानदार के पास जिससे खरीदकर लाया था, कि क्या मामला है? दुकानदार ने कहा, साहब, अब क्या करें? हर चीज में मिलावट है। शुद्ध जहर आजकल मिलता कहां है! यह कलियुग चल रहा है। सतयुग की छोड़ो, बड़े मियां। शुद्ध चीज मिलती कहां है! अशुद्ध जहर उतना खतरनाक नहीं है। शुद्ध जहर की मात्रा थोड़ी भी होगी तो बहुत खतरनाक हो जाएगी। यद्यपि जहर इतना शुद्ध है कि अब शरीर पर उसके परिणाम नहीं पड़ रहे हैं, क्योंकि शरीर पर तो अशुद्ध चीज के परिणाम ज्यादा पड़ते हैं। _इसलिए तुम फर्क देखना, एक असात्विक अहंकारी का रोग शरीर पर प्रगट होने लगेगा, और सात्विक अहंकारी का रोग शरीर पर प्रगट नहीं होगा। उसको अगर देखना है तो तुम्हें जरा गहरी आंखों से खोजना होगा। वह भीतर होगा, बड़ा सूक्ष्म होगा। संसारी का अहंकार कोई भी पकड़ ले, संन्यासी का अहंकार पकड़ने के लिए आंखें चाहिए। भोगी का अहंकार कोई भी पकड़ ले, त्यागी का अहंकार पकड़ने के लिए आंखें चाहिए। बुद्ध ने कहा कि देख, करुणा से लाभ तो हुआ, लेकिन अभी करुणा तेरी सोयी-सोयी, मूछित है, इसे जगा। जागकर कर, जो तू कर रही है। तेरा अहंकार सूक्ष्म होकर मौजूद है। अब इसे भी जाने दे। और तब उन्होंने ये गाथाएं कहीं 144
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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