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________________ तुम तुम हो जब तुम आते हो तो क्या तुम्हारी गति हो जाती है! कैसा नरक तुम्हारे चेहरे पर उतर आता है! कैसी हिंसा! कैसी हत्या ! तुम कैसे पशुवत मालूम होने लगते हो! तुम्हारी आंखें खून से भर जाती हैं। तुम्हारी मुट्ठियां भिंच जाती हैं। तुम्हारे दांत पिसने लगते हैं। यह पशु की अवस्था है। __तुम्हें पता है न कि पशु जब क्रोध से भरता है तो दो ही काम कर सकता है—एक तो अपने नाखून, अंगुलियों से नोच सकता है, इसलिए मुट्ठियां भिंच जाती हैं; और दूसरा अपने दांतों से चीर-फाड़ कर सकता है। और तो कोई पशु के पास हथियार होते नहीं। आज भी आदमी जब क्रोध करता है, तो डार्विन सही है, यही सिद्ध करता है, तब तुम्हारी मुट्ठियां भिंचने लगती हैं। तुम एकदम नोचने को तैयार हो जाते हो। और तुम्हारे दांत काटने को तैयार हो जाते हैं। तुम गिर गए पशु-तल पर। तुम आदमी न रहे क्रोध के क्षण में। और स्वभावतः, उस अवस्था में अगर तुम्हारे चेहरे पर पाशविकता उभर आती है, एक हैवानी स्थिति बन जाती है, तो कुछ आश्चर्य नहीं। काश, तुम देख सको अपने चेहरे को क्रोध में! लेकिन दूसरे देखते हैं। तुम दूसरों का देखते हो। अपना कोई भी नहीं देख पाता। अपना जो देखने लगे, वह धीरे-धीरे मुक्त हो जाता है। उसे होना ही पड़ेगा। तो कभी-कभी आईने के सामने क्रोध में खड़े हो जाना। क्रोध को उभारना, एक कल्पना खड़ी करना, एक नाटक खेलना। अपने दुश्मन का स्मरण करना, जिसको तुम मार ही डालना चाहते हो, और सोचना कि मारने को बिलकुल तत्पर हो गया हं, अब मेरी कैसी चित्त की दशा होगी और मन कैसा होगा, आंखें कैसी होंगी, चेहरा कैसा होगा और देखना अपनी कुरूपता। शायद तुम फिर कभी क्रोध न कर पाओ। फिर कभी करुणा का भाव जगाकर भी देखना, क्योंकि क्रोध के विपरीत है करुणा। तब तुम अचानक पाओगे कि तुम्हारे चेहरे में बुद्धत्व उभर आता है। तुम्हारे चेहरे में छिपा हुआ बुद्ध प्रगट होने लगता है। तुम्हारे चेहरे में कुछ एक अपूर्व प्रसाद . भी छिपा है। जैसा पशु छिपा है, वैसा परमात्मा भी छिपा है। जब तुम करुणा भरकर खड़े होओगे, तब तुम अचानक अपने भीतर परमात्मा को प्रगट होते पाओगे। उसकी तुम्हें जरा भी झलक मिल जाए तो तुम्हारे जीवन में क्रांति सुनिश्चित है। बुद्ध ने कहा, तेरे क्रोध के कारण। यह अत्यंत क्रोध का फल है और इसीलिए देख कि करुणा से अपने आप दूर हो चला। __ तू इन दीन-दरिद्र भिक्षुओं के लिए, भिखारियों के लिए, घर-विहीन अनागरिकों के लिए इतनी आतुरता से छप्पर डाल रही है, मकान बना रही है, इस करुणा के कारण यह रोग अपने से दूर हो गया है। क्रोध के कारण पैदा हुआ था, करुणा के कारण दूर हो गया। क्रोध के कारण जो बीमारी है, करुणा उसका इलाज है। हिंसा के कारण जो बीमारी है, प्रेम उसका इलाज है। अहंकार के कारण जो बीमारी है, 143
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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