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एस धम्मो सनंतनो
विधि दे दी।
यह काम ऐसा था कि कठिन था, पैसा था नहीं पास, गहने बेचने पड़ेंगे। और गहना अगर कोई सुंदर स्त्री बेचने को राजी हो जाए, तो उसने अपने सौंदर्य को सजाने का आधा काम तो बंद कर ही दिया । आखिर गहने का लोभ ही क्या था ? गहने में अर्थ ही क्या था? वही अर्थ था कि ज्यादा सुंदर दिखे। हीरे-जवाहरात का सौंदर्य भी मेरे सौंदर्य में जुड़ जाए, और मुझे चमकाए, और दीप्तिवान करे ।
अनिरुद्ध ने ऐसी तरकीब की कि सब गहने बिक गए। शायद कीमती साड़ियां भी बेच दी होंगी। तो उस रूप को सजाने का जो उपाय था, वह तोड़ दिया अनिरुद्ध ने, जड़ से काट दिया।
और फिर बड़ी बात यह की कि यह काम ऐसा था, जल्दी करना था, वर्षा आती थी, और बड़ा काम था, और यह रोहिणी बिलकुल उलझ गयी होगी। सुबह से सांझ तक थकी-मांदी काम में लगी रहती होगी, रात बेहोश होकर पड़ जाती होगी, सुबह फिर भागकर जाती होगी। यह काम इतना बड़ा था, बुद्ध द्वार पर खड़े थे, वर्षा सिर पर आती थी, इतना बड़ा काम उसके ऊपर आ पड़ा था, उसे पूरा करके दिखलाना था। पुरानी मानिनी स्त्री थी, इतना बड़ा दायित्व मिला था, उसे पूरा करना ही है। इस सब में भूल गयी होगी ।
तो बुद्ध ने - जब वह बुद्ध के पास गयी-तब बुद्ध ने कहा, जानती हो किस कारण हुआ ? नहीं भंते ।
हम रोग से पीड़ित हैं, और हम ही रोग के जन्मदाता हैं, और हमें पता भी नहीं कि कैसे हम रोग को पैदा करते हैं । अब तुम इलाज भी कर लो तो क्या होगा ! अगर तुम रोग को पैदा करते ही चले जाओगे, तो कितना ही इलाज करो कुछ हल न होगा। एक हाथ से इलाज करोगे, दूसरे हाथ से रोग पैदा करोगे, तो कब अंतिम परिणाम आने वाला है? कभी नहीं ।
लेकिन अब घड़ी आ गयी थी। अब एक प्रतिशत बीमारी बची थी। अब विश्लेषण किया जा सकता है। और इस सोयी हुई स्त्री को जगाया जा सकता है। बुद्ध ने यह मौके को देखकर कहा, रोहिणी, तेरे क्रोध के कारण । तेरा क्रोध ही तेरे रूप पर कुरूपता बन गया है।
तुमने कभी देखा कि सुंदर से सुंदर व्यक्ति भी जब क्रोध करता है तो कुरूप हो जाता है। काश, तुम्हें पता हो कि तुम कितने कुरूप हो जाते हो जब तुम क्रोध करते हो, और तुम कितने सुंदर हो जाते हो जब तुम प्रेम करते हो, तो शायद तुम इसी कारण क्रोध करना छोड़ दो।
कभी आईने के सामने खड़े होकर क्रोध की मुद्रा बनाना, क्रोध को जगाना, वीभत्स चेहरा खड़ा करना और देखना कि क्या हालत तुम्हारे चेहरे की हो जाती है। अपना चेहरा तो क्रोध में दिखता नहीं, इसलिए तुम्हें पता ही नहीं चलता कि क्रोध में
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