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तुम तुम हो तुम अगर उसको फिर से डाक्टर के पास ले जाओ तो शायद तुम्हारा डाक्टर भी उसे न पढ़ सके।
अनिरुद्ध ने ठीक ही किया कि कहा नहीं । चुपचाप एक प्रक्रिया बता दी।
मेरे पास लोग आते हैं, कोई कहता है, क्रोध से परेशान हैं। मैं कहता हूं, ठीक, क्रोध की तुम फिकर न करो, ध्यान करो। उनको अच्छा नहीं लगता। क्योंकि वे तो क्रोध के लिए और मैं कहता हूं, ध्यान करो। वे समझते हैं कि उनकी बीमारी को तो मैंने छुआ ही नहीं ।
तुम्हारी क्रोध की बीमारी को छूने की जरूरत ही नहीं है। तुम अगर किसी तरह ध्यान में उतर जाओ, थोड़ी देर अपने को भूलने लगो, विस्मरण करने लगो नाच में, गीत में, गान में, ध्यान में, भक्ति में, भाव में, क्रोध की क्षमता अपने आप क्षीण हो जाएगी।
कोई आता है, कहता है, मुझमें बड़ा अहंकार है, प्रज्वलित, दग्ध अंगारे की तरह, क्या करूं, कैसे बुझाऊं ? मैं कहता हूं, तुम ध्यान करो। उसको भी बात ठीक नहीं लगती। क्योंकि उसे लगता है कि वह तो इतनी बड़ी बीमारी लेकर आया और मैंने उसे ऐसे टाल दिया, कहा कि ध्यान करो। वह सोचता है, शायद मैंने टाल ही दिया । और फिर उसे यह भी हैरानी होती है कि कोई भी बीमारी लेकर आओ, मैं कहता हूं, ध्यान करो ! कहीं सब बीमारियों की एक दवा हो सकती है !
मैं तुमसे कहता हूं, हो सकती है। क्योंकि सब बीमारियों के पीछे एक मन है। और सब दवाओं के पीछे एक ध्यान है। ध्यान यानी मनरहित दशा । और तो क्या ध्यान का अर्थ होता है ! ध्यान रामबाण है। उससे सब शत्रु मारे जाते हैं। क्योंकि शत्रु नाम कुछ भी हों, सब मन के ही नाम हैं।
अनिरुद्ध ने ठीक ही किया कि रोहिणी को कहा कि तू जा, इस काम में लग जा। उसने उसकी बीमारी की चर्चा ही न उठायी, उसका विश्लेषण भी न किया । कभी-कभी विश्लेषण महंगा पड़ जाता है।
मनोचिकित्सक विश्लेषण करते हैं। तो बीमार को तीन-तीन, चार-चार साल, पांच-पांच साल लग जाते हैं। रोज जाओ, घंटेभर विश्लेषण चलता है। पांच साल मन का विश्लेषण चलता है, फिर भी कुछ खास परिणाम होते, ऐसा दिखायी नहीं पड़ता। विश्लेषण थोड़ा जरूरत से ज्यादा हो गया । निदान ही निदान चलता रहता है, औषधि का मौका ही नहीं आता। असली बात तो औषधि है। निदान तो चिकित्सक कर ले अपने भीतर, निदान की तुम्हें बताने की भी जरूरत नहीं।
अनिरुद्ध ने देख लिया होगा कि मामला क्या है । अनिरुद्ध की बहन थी, बचपन से जानता होगा कि इसका असली रोग क्या है। इसका असली रोग है रूप की आकांक्षा। इसका असली रोग है दंभ, घमंड । वही रोग इसे खाए जा रहा है। यह अपने को भुला नहीं पाती, यह अपनी देह को नहीं भुला पाती। उसने चुपचाप एक
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