SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो थे-जल्दी ही वर्षा आने को होगी, अषाढ़ के दिन करीब आते होंगे, बादल घिरते होंगे, जल्दी छप्पर डलवा देना था, दस हजार भिक्षुओं का इंतजाम करना था रहने का, रोहिणी बिलकुल भूल गयी होगी, डूब गयी होगी काम में। कथा प्यारी है, कहती है कि निन्यानबे प्रतिशत रोग दूर हो गया। फिर भी वह बुद्ध के पास न गयी। अभी भी एक प्रतिशत बचा था। जाती-जाती पूंछ बची होगी-हाथी निकल गया होगा, पूंछ बची होगी। आखिरी छाया बीमारी की चेहरे पर रही होगी। __फिर बुद्ध ने उसे बुलवाया और बुद्ध ने पूछा उससे कि जानती हो यह किस कारण हुआ है ? उसने कहा, नहीं भंते। अनिरुद्ध ने इलाज कर दिया बिना उसे बताए। अनिरुद्ध चिकित्सक रहा होगा। बिना कुछ कहे इलाज कर दिया। शायद कहने से गड़बड़ भी हो जाती। शायद कहने से सचेतन हो जाती ,रोहिणी, फिर शायद इतनी आसानी से इलाज न हो पाता। कई बार चिकित्सक को तुम्हें बिना बताए इलाज करना होता है। तुमने देखा न, चिकित्सक जब प्रिस्क्रिप्शन लिखता है तो तुम पढ़ नहीं पाते, वह एकदम जरूरी है कि तुम न पढ़ पाओ। तुम पढ़ लो तो इलाज होने में मुश्किल पड़ जाए। क्योंकि कभी-कभी तो वह ऐसी चीजें लिखता है जो तुम जानते ही हो-इनमें रखा क्या है! तुम खुद ही जानते हो। इसलिए एलोपैथी लैटिन और ग्रीक नाम चुनती है दवाइयों के। वह एकदम उचित है। अगर तुम्हारी ही भाषा में नाम हो तो तुम कहोगे, अरे! समझो कि अजवाइन का सत्व, वह लैटिन और ग्रीक में हो तो तुम जाकर पांच रुपया या दस रुपया दे आते हो केमिस्ट को, वह अगर हिंदी में हो, तुम दो आना देने को राजी न होओगे। और अजवाइन का सत्व! अजवाइन के सत्व से कहीं कोई ठीक हुआ है! यह तो बड़े-बूढ़े घर में कहते ही रहे हैं। यह पत्नी तुम्हारी कह ही रही थी कि अजवाइन ले लो, पेट में दर्द है, गैस है, फला-ढिकां, अजवाइन ले लो। उसकी तो तुमने सुनी भी नहीं थी, अजवाइन ली भी थी तो कोई परिणाम भी नहीं हुआ था। लेकिन यह डाक्टर का नाम, बड़ी डिग्री, बड़ी तख्ती, बड़ी भीड़, इसके बैठकखाने में दो घंटे तक प्रतीक्षा, यह सब दवा का हिस्सा है। फिर इसका प्रिस्क्रिप्शन, इसकी लिखावट पढ़ने में नहीं आती...। __ मुल्ला नसरुद्दीन मुझसे कह रहा था कि डाक्टर ने जो मुझे प्रिस्क्रिप्शन दिया था, बड़ा काम आया। मैंने पूछा, क्या काम आया? उसने कहा, दवा तो उससे ले ही ली थी, दो महीने तक रेल में सफर किया बता-बताकर कि यह पास है। क्योंकि कोई उसको पढ़ नहीं सकता, तो वह चेकर भी कुछ कहे नहीं, कि ठीक है, झंझट मिटाओ। वह तो बड़े काम की चीज है, उसको जहां भी झंझट आती है मैं बता देता हूं एकदम। उसको कोई पढ़ तो सकता नहीं और कोई यह मानने को राजी है नहीं कि पढ़ नहीं सकता। इसलिए कहता है, बिलकुल ठीक है, आगे बढ़ो। 140
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy