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________________ तुम तुम हो सीधा-सादा है। एक ऐसी भी घटना है जब मन आत्मा से जुड़ जाता है। जब तक मन शरीर से जुड़ा है, तब तक तो सब होगा जो शरीर में हो रहा है। लेकिन जैसे ही मन आत्मा से जुड़ गया, शरीर में होता रहेगा, लेकिन मन में अब कुछ भी न होगा। और जब मन में कुछ न होगा, तो हमने सारी कथाएं तो उसी गहराई की लिखी हैं। ___ यह रोहिणी छवि रोग से पीड़ित हो गयी। अभिमानी रही होगी, मानी रही होगी। भाई बुद्ध का बड़ा भिक्षु है-अनिरुद्ध के भी पांच सौ शिष्य थे, अनिरुद्ध काफी महत्वपूर्ण शिष्यों में एक था-वह गांव में आया है, सारा गांव उसके दर्शन करने को आया है, सारा परिवार गया और रोहिणी नहीं गयी। तो सोचा होगा अनिरुद्ध ने कि बहन को क्या हआ? आयी क्यों नहीं? खबर भिजवायी होगी। आयी भी तो पर्दा करके आयी। चूंघट बड़ा डाल लिया होगा। उसने पूछा कि मुझसे बूंघट! भाई से चूंघट! भिक्षु से बूंघट ! यह बात क्या है, तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है! तो उसने सारी कथा कही। उसने कहा कि मैं छवि रोग से पीड़ित हूं। मेरी छवि विकृत हो गयी है। चेहरे पर फफोले पड़ गये हैं, चमड़ी कुरूप हो गयी है, और मैं इस चेहरे को तुम्हें न दिखाना चाहंगी। मझे बड़ी लज्जा आती है। यह भी अहंकार है। लज्जा भी अहंकार की ही छाया है। लज्जा क्या, जैसा है वैसा है! लज्जा का अर्थ ही यह होता है कि जैसा होना चाहिए वैसा नहीं है। जैसा मैं चाहता, वैसा नहीं है। और जैसा है, वैसा मैं चाहता नहीं। वैसा मुझे स्वीकार नहीं, अंगीकार नहीं। लज्जा में ही विरोध है, जो तथ्य है उसका विरोध है। और सपना, और कल्पना, कोई होना चाहिए था वह नहीं है। तो उसने कहा, मुझे बड़ी लज्जा आती है। तुम आमतौर से सोचते हो कि लज्जालु व्यक्ति सज्जन होता है। वह भी अहंकारी होता है। लज्जा साधु को होती ही नहीं। इसीलिए तो मीरा ने कहा, सब लोक-लाज खोयी। परम साधु को कैसी लोक-लाज? लज्जा का तो अर्थ ही होता है कि अभी चल रही है भीतर अहंकार की धारणा। पूरब में हम कहते हैं, हमारी स्त्रियां अत्यंत लज्जालु हैं। और लज्जा को हमने गुण माना है। पश्चिम की स्त्रियों में वैसी लज्जा नहीं है तो हम सोचते हैं, यह बात तो निर्लज्ज। इनमें कोई लज्जा नहीं है। लेकिन इसे तुम समझना, लज्जा का मतलब अहंकार है। पूरब की स्त्रियां ज्यादा अहंकारी हैं। उन्हें अपने शील, सौंदर्य, चरित्र, सतीत्व का बड़ा गहन घमंड है। पश्चिम की स्त्री इस अर्थ में सीधी-सरल है। उसे कोई लज्जा नहीं है। अहंकार के ही साथ लज्जा आती है। वह अहंकार की ही सजावट है। अहंकार पर ही सोना मढ़ दिया। तो हम खूब प्रशंसा करते हैं कि देखो, फलां आदमी कैसा लज्जालु है। हम बुरे आदमी को कहते हैं, बेशर्म; अच्छे आदमी को कहते हैं, शर्म वाला। फिर मीरा क्या कह रही है? सब लोक-लाज खोयी? सब शर्म खो दी? 137
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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