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________________ एस धम्मो सनंतनो प्रेम में पड़ते हैं। तो बुढ़ापे को सरकाते चले जाते हैं। क्योंकि चमड़ी बार-बार जवान हो जाती है। पूरब के मुल्कों में लोगों की उम्र कम है, क्योंकि एक बार तुम्हारा प्रेम हो गया किसी से, फिर तुम थिर हो गए, फिर बात खतम हो गयी, फिर तुम्हारे जीवन में दुबारा प्रेम के माध्यम से चमड़ी के नए होने का कोई उपाय नहीं है। __एक आदमी जिसके जीवन में कोई प्रेम नहीं है, उसके चेहरे को तुम गौर से देखो, तुम एक तरह की धूल जमी हुई पाओगे, एक तरह की उदासी। और एक आदमी जिसके जीवन में प्रेम है, तुम अचानक पाओगे एक तरह की त्वरा, ताजगी, अभी-अभी जैसे नहाया हो, एक गति, गत्यात्मकता, एक तेजस्विता। हमने तो महापुरुषों के आसपास आभामंडल बनाया है। बुद्ध की प्रतिमा हो, कि कृष्ण की, कि राम की, हम आभामंडल बनाते हैं। वह आभामंडल अर्थपूर्ण है। वह यह कह रहा है कि अब इनकी चमड़ी की जो आभा है, मन के द्वारा उस आभा को कोई खंडन नहीं हो रहा है, मन उसमें बाधा नहीं डाल रहा है। इनकी आभा जैसी होनी चाहिए वैसी है। इनके आसपास एक प्रकाश का वर्तुल है। जब साधारण प्रेम में आदमी के चेहरे पर आभा आ जाती है, तो परमात्मा के प्रेम में तो आ ही जानी चाहिए। जब साधारण प्रेम से आदमी जवान हो जाता है, तो परमात्मा के प्रेम से तो सदा जवान रहना ही चाहिए। इसलिए हमारी कथाओं में कोई उल्लेख नहीं है कि राम बूढ़े हुए, कि कृष्ण बूढ़े हुए, कि बुद्ध बूढ़े हुए। बूढ़े तो हुए, लेकिन तुमने बुद्ध की कोई बूढ़ी प्रतिमा देखी? तुमने राम की कोई बूढ़ी प्रतिमा देखी कि लकड़ी टेककर चल रहे हों? बूढ़े तो निश्चित हुए होंगे, यह तो कोई सवाल नहीं है कि बूढ़े नहीं हुए। बुद्ध के संबंध में तो साफ उल्लेख हैं कि बूढ़े हुए, अस्सी साल के हुए, कृष्ण भी अस्सी-बयासी के हुए। लेकिन हमने कोई चित्र भी नहीं बनाया उनके बुढ़ापे का, क्योंकि हमने एक बात सम्हालकर रखनी चाही कि इनके भीतर कुछ ऐसा प्रेम घटा था, कि एक अर्थों में ये जवान ही रहे। __ इसलिए हमारे पास बूढ़े कृष्ण की कोई कथा नहीं है। बूढ़े बुद्ध की कोई कथा नहीं है। बूढ़े महावीर की कोई कथा नहीं है। ये सब बूढ़े हुए, क्योंकि शरीर का धर्म है, बूढ़ा तो होगा ही। इन सबके बाल भी सफेद हुए होंगे, लेकिन तुमने कोई प्रतिमा देखी, या कोई चित्र देखा, जिसमें बुद्ध के बाल सफेद? नहीं, क्योंकि हमने बुढ़ापे को स्वीकार नहीं किया। हमने कहा, यह बात हो नहीं सकती। हो गयी है तो शरीर पर हो रही है, लेकिन इनकी आभा सदा जवान थी। हमने उस आभा पर ही ध्यान रखा। ये चिर युवा थे। इनकी चमड़ी पर बुढ़ापे ने कोई शिकन न डाली। इनका मन एक ऐसे शाश्वत जीवन से संयुक्त हो गया, जहां बुढ़ापा आता ही नहीं। तुमने सुना है कभी कि देवदूत बूढ़े होते हैं? कि स्वर्ग की अप्सराएं बूढ़ी होती हैं? नहीं, वे सब जवान ही रहते हैं। वहां बुढ़ापा होता ही नहीं। अर्थ इसका 136
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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