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एस धम्मो सनंतनो
के सारे संसार का हमने एक ही अर्थ किया है— नाम - रूप । रूप का अर्थ होता है, देह । नाम का अर्थ होता है, सूक्ष्म मन । मनुष्य का, अगर वह पुरुष है तो बहुत लगाव होता है नाम से - प्रतिष्ठा, पद, पदवी, यश, धन, ज्ञान, त्याग - कहीं नाम । स्त्री का आग्रह होता है रूप पर। सौंदर्य ।
मुल्ला नसरुद्दीन मुझसे बोला कि मुझे नौकरी मिल गयी है, एक ब्यूटी पारलर में। एक सौंदर्य-प्रसाधन की दुकान में नौकरी मिल गयी है। मैंने उसे उस दुकान के सामने खड़ा कई बार देखा, तो पूछा कि तू वहां खड़ा ही तो रहता है, नौकरी क्या मिली ? बाहर खड़ा रहता है ! उसने कहा, यही मेरी नौकरी है। मैंने कहा, तेरा काम क्या है ? उसने कहा, काम भी बड़ा सरल है - ऐसे बड़ा सूक्ष्म । फिर भी, मैंने कहा, मुझे कहो काम तेरा क्या है? मैं जब देखता हूं, वहीं तू खड़ा है बाहर। उसने कहा, काम मेरा यह है कि जो स्त्रियां सौंदर्य-प्रसाधन के लिए आती हैं, जब वे भीतर जातीं हैं तो मेरा काम है उपेक्षा दिखलाना । नजर भी नहीं डालना, देखना ही नहीं कि कौन जा रहा है, कौन आ रहा है । और जब वे सज-धजकर, बाल ठीक करवाकर बाहर निकलती हैं, तो सीटी बजाना । यह मेरा काम है, यह मेरी नौकरी है। इससे दुकान खूब चल रही है। क्योंकि स्त्रियों को समझ में एक बात आ जाती है कि अभी गयी थी और यह आदमी देखा तक नहीं और अब बाल-वाल संवारकर बाहर आ रही हूं तो सीटी बजा रहा है - वही आदमी! तो जरूर सुंदर होकर लौटी हूं।
स्त्री का सारा आकर्षण रूप में है। इसलिए स्त्री को बहुत फिकर नहीं होती नाम की। इसलिए स्त्रियां कोई ऐसे बहुत काम नहीं करतीं जिनसे नाम मिले, कि कोई बड़ी किताब लिखनी, कि मूर्ति बनानी, कि पेंटिंग बनानी, कि महाकाव्य लिखना, कि दुनिया की कोई ख्याति मिल जाए। कुछ लेना-देना नहीं । स्त्री को सारा प्रयोजन है सौंदर्य से ।
रोहिणी सुंदर स्त्री रही होगी। स्त्री थी, सौंदर्य पर उसकी पकड़ रही होगी । और यह जो अहंकार हो — जैसा भी हो अहंकार, चाहे रूप का, चाहे नाम का, जहां अहंकार है वहां क्रोध है । क्योंकि क्रोध का अर्थ ही होता है, अहंकार को लगी चोट । तुम सोचते हो कि तुम बड़े ज्ञानी हो, किसी ने कह दिया कि क्या तुममें रखा है ज्ञान-वान — चोट लग गयी । तुम सोचते हो कि तुम बड़े सज्जन हो और किसी ने कह दिया कि काहे के सज्जन, चोर, बेईमान; तुम सोचते हो साधु हो, किसी ने कह दिया असाधु; तुमने सोचा कि सुंदर हो और किसी ने कह दिया असुंदर; तो चोट लग गयी। तुम्हारी मान्यता को चोट लग जाए तो क्रोध पैदा होता है। तुम्हारी मान्यता को जो साथ दे दे, उस पर बड़ा लगाव आता है।
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यही तो प्रशंसा से तुम इतने प्रशंसित होते हो। कोई कह दे कि हां, तुम जैसा सुंदर और कौन ! तुम बाग-बाग हो जाते हो। तुम्हारी सब पखुड़ियां खिल जाती हैं, तुम खुश हो जाते हो । किसी ने तुम्हारे अहंकार को फुसलाया, राजी कर लिया।
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