________________
तुम तुम हो लेकिन करुणा जान-बूझकर नहीं की। मूर्छा में की है; भाई ने कहा है, इसलिए की है। तेरे भीतर से सहजस्फूर्त नहीं है। इसलिए एक प्रतिशत बच रहा है। जाग! जो अभी तू करुणा कर रही है, होश से कर! और जो अहंकार अभी तूने ऐसा काम में भूलकर भुला दिया है, उसे जानकर ही त्याग दे! और कहते हैं, इस बात को सुनते-सुनते ही रोहिणी का सारा रोग चला गया। तब भगवान ने ये गाथाएं कहीं।
आज की पहली चार गाथाएं रोहिणी को कही गयी थीं।
पहले तो इस कहानी को ठीक से समझ लें। यह अपूर्व है। इसमें पड़ा हुआ मनोविज्ञान गहरा है। मनस्विद जो अब खोज पा रहे हैं, वे सारे सूत्र इसमें मौजूद हैं। __पहली बात, आधुनिक मनोविज्ञान कहता है कि मनुष्य का मन उसकी बीमारियों का नब्बे प्रतिशत कारण है। नब्बे प्रतिशत बीमारियों के आधार में मन है। इसलिए इलाज से बीमारियां बदल जाती हैं, ठीक नहीं होतीं। एक बीमारी हुई, इलाज कर लिया, दवाओं ने उस बीमारी को रोक दिया, दूसरी तरफ से बीमारी बहने लगी। क्योंकि मन तो वही है, मन तो बदला नहीं, मन की तो कोई चिकित्सा हुई नहीं।
समझो यह रोहिणी किसी डाक्टर के हाथ में पड़ गयी होती—यह तो भला हुआ कि बुद्ध जैसे डाक्टर के हाथ में पड़ गयी–यह किसी डाक्टर के हाथ में पड़ती? तो डाक्टर क्या करता, इसकी चमड़ी का इलाज करता। चमड़ी में रोग था नहीं, चमड़ी में केवल परिणाम था। रोग मन में था। मन का रोग चमड़ी पर फफोले होकर निकल रहा था।
तो कोई चिकित्सक इसके चेहरे के फफोले ठीक कर देता, यह भी हो सकता था प्लास्टिक सर्जरी कर देता, इसके सारे चेहरे की चमड़ी बदल देता, तो यह रोग कहीं और से प्रगट होता। हाथों में छाजन हो जाती, कि पैरों में लकवा लग जाता, कि आंखें अंधी हो जातीं, कि कान बहरे हो जाते, यह रोग किसी और दरवाजे को खोज लेता। रोग तो मिटता नहीं, तो दरवाजा तो खोजता। असल में जिसको हम रोग कहते हैं, वह रोग नहीं है, रोग का लक्षण है। साधारण चिकित्सक,लक्षण से लड़ता है, महाचिकित्सक रोग के मूल से लड़ता है। ___ आधुनिक मनोविज्ञान कहता है कि जब तक आदमी का मन न बदला जाए, तब तक किसी बीमारी से वस्तुतः छुटकारा नहीं होता। ___ इसलिए तुमने भी देखा होगा, एक दफे बीमारी के चक्कर में पड़ जाओ तो निकलने का रास्ता नहीं दिखता। किसी तरह एक बीमारी से निकल नहीं पाते कि दूसरी घर कर लेती है, कि दूसरे से निकल नहीं पाते कि तीसरी घर कर लेती है। ऐसा लगता है, एक कतार है बीमारियों की, तुम एक से निपटे कि दूसरी बीमारी पकड़ती है। जब तक ठीक थे, ठीक थे। इसलिए लोग कहते हैं, बीमारी अकेली नहीं आती। कहावतें कहती हैं, बीमारी अकेली नहीं आती। संग-साथ में और बीमारियां लाती है। दुख अकेला नहीं आता, साथ में भीड़ लाता है।
129