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________________ एस धम्मो सनंतनो मितभाणिनम्पि निन्दन्ति नत्थि लोके अनिन्दितो।।१९४।। एक बार भगवान कपिलवस्तु गए। उनके शिष्यों में एक स्थविर अनिरुद्ध की -बहन रोहिणी वहां रहती थी। उसके परिवार के सभी लोग स्थविर अनिरुद्ध को मिलने आए, लेकिन रोहिणी नहीं आयी। अनिरुद्ध चिंतित हुए। उन्होंने बहन को बुलवाया। वह आयी भी तो मुंह ढंककर आयी। स्थविर अनिरुद्ध तो बड़े चिंतित हुए। उन्होंने उससे पूछा कि पहले तो तू आयी नहीं, अब आयी भी है तो मुंह ढंककर आयी है, इसका कारण क्या है? रोहिणी ने कहा, मेरा चेहरा अनायास विकृत हो गया है। सारे चेहरे पर फफोले हो गए हैं। मैं छवि रोग से पीड़ित हूं। इसीलिए पहले आयी नहीं, लज्जावश। आपने बुलाया तो आयी हूं, लेकिन मुंह ढंककर आयी हूं। यह मुंह दिखाने योग्य नहीं रहा। स्थविर अनिरुद्ध ने उससे कहा, छोड़ इसकी फिकर। भगवान का आगमन हुआ है, उनके दस हजार भिक्षु गांव में हैं, उनके ठहरने के लिए एक विशाल भवन बनवाना है, तू उस भवन को बनाने में लग जा। रोहिणी के पास इतने रुपए थे भी नहीं। लेकिन उसने अपने सारे जवाहरात, अपने सब गहने बेच दिए और भिक्षुओं के निवास के लिए भवन बनवाने में लग गयी। भवन बनाने का काम ऐसा था कि भूल ही गयी अपने रोग को, और आश्चर्य की घटना घटी कि निवास बनवाते-बनवाते ही निन्यानबे प्रतिशत रोग अनायास ठीक हो गया। लेकिन वह अभी भी भगवान के दर्शन को नहीं आयी थी। तब भगवान ने उसे बुलवाया और पूछा, क्यों नहीं आयी? उसने कहा, भंते, मेरे शरीर में छवि रोग उत्पन्न हो गया था, उसी से लज्जित होकर नहीं आयी। अब स्थविर अनिरुद्ध की दवा से निन्यानबे प्रतिशत तो ठीक हो गया है, लेकिन एक प्रतिशत अभी भी बाकी है। यह कुरूप चेहरा आपको कैसे दिखाऊं? इसलिए बचती थी। आपने बुलाया तो आयी हूं, क्षमा करें। ___ भगवान ने पुनः पूछा, जानती हो यह किस कारण हुआ? नहीं भंते, वह बोली। भगवान ने कहा, रोहिणी, तेरे क्रोध के कारण। यह अत्यंत क्रोध का फल है। और इसीलिए, देख कि करुणा से अपने आप दूर हो चला है। और क्रोध तो अहंकार का परिणाम है। तुझे अपने रूप का बड़ा अभिमान था। उस अहंकार पर पड़ी चोट के कारण ही क्रोध होता था। भिक्षुओं के लिए भवन बनाने में तू भूल गयी अपने को। तेरा अहंभाव विस्मृत हो गया। तू ऐसी संलग्न हो गयी इस करुणा के कृत्य में कि अहंकार को खड़े होने की, बचने की जगह न रही। इसलिए देख, रोग अपने आप दूर हो चला है। लेकिन पूरा दूर नहीं हुआ, क्योंकि अहंकार तेरा छूटा तो, लेकिन बोधपूर्वक नहीं छूटा है। इसलिए एक प्रतिशत रोग बचा है। करुणा तो तूने की, 128
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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