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________________ एस धम्मो सनंतनो बना दें। यह काम ज्यादा रुचता है। तो मैं तुम्हारी तकलीफ समझता हूं कि तुम्हारे मन में भी गुरु बनने का भाव तो छिपा बैठा है। और कभी-कभी मैं ऐसी बातें कहता हूं। मैं जानना चाहता हूं, किस-किस के भीतर गुरु-भाव छिपा बैठा है? ___ 'मन को दुख हुआ।' __ मन को दुख होने का कारण यह है कि तुम्हारी अपेक्षाएं पूरी न हों तो मन को दुख हो जाता है—तुम जैसी अपेक्षा रखते हो। और एक बात तुम खूब समझ लो कि मैं तुम्हारी कोई अपेक्षा कभी पूरी नहीं करूंगा। क्योंकि यहां मैं तुम्हारी अपेक्षा पूरी करने में उत्सुक ही नहीं हूं। तुम्हें पूरा कर सकता हूं, लेकिन तुम्हारी अपेक्षा पूरी नहीं कर सकता हूं। और तुम्हें पूरा कर सकता हूं, इसीलिए कि तुम्हारी अपेक्षा पूरी नहीं करूंगा। अगर तुम्हारी अपेक्षाएं पूरी करने लगू, तो तुम अधूरे रह जाओगे। . अब तुम चुन लो। तुम्हारी अपेक्षाएं तो मुझे तोड़नी होंगी, जगह-जगह से तोड़नी होंगी। तुम्हारी धारणाएं तो सब तरफ से उखाड़ देनी होंगी। तुम्हें तो मुझे धीरे-धीरे उस जगह ले आना है, जब तुम्हारे भीतर कोई धारणा नहीं, कोई अपेक्षा नहीं—निर्धारणा। उस घड़ी में ही क्रांति घटेगी, दीया जलेगा। लेकिन इन छोटी-मोटी बातों पर हिसाब लगाकर बैठे हो! मैंने सुना, एक साधु आटा मांगने एक घर के सामने रुका। सास मंदिर गयी थी, घर में बहू थी, उसने कहा, महाराज, आगे जाओ। बड़ी तेज-तर्रार औरत मालूम होती थी। साधु फिर कुछ बोला नहीं, और ज्यादा फजीहत करानी ठीक भी न थी, वह वापस लौट गया। ____ जब वह वापस लौट रहा था तो मंदिर से लौटती हुई सास रास्ते में मिली। सास ने पूछा, क्यों बाबा, मेरे घर गए थे क्या? साधु के हां कहने पर उसने पूछा, तो फिर बहू ने क्या कहा? साधु ने कहा कि बहू ने कहा कि बाबा, महाराज, आगे जाओ, कहीं और जाओ। बड़ी तेज-तर्रार औरत! सास एकदम गुस्से में आ गयी, उसने कहा, वह कौन होती है मना करने वाली? मेरे रहते वह है कौन मना करने वाली? घर का मालिक कौन है ? तुम चलो मेरे साथ, मैं अभी उसे ठीक करती हूं। __साधु बड़ा प्रसन्न हुआ, सोचा कि जब बुलाकर ले जा रही है तो कुछ देगी। दोनों जब घर पहुंच गए, तो सास ने गुस्से में बहू से पूछा, बहू, तुमने महाराज को आटा देने से मना किया था? मेरे रहते तू कौन है मना करने वाली? माफी मांग साधु महाराज से। बहू ने माफी मांगी, साधु तो बड़ा खुश हुआ। और जब बहू माफी मांग चुकी, तो सास ने कहा, महाराज, जाओ, अब मैं कहती हूं! कहीं आगे जाओ! औपचारिकता पूरी कर दी। अब मैं कहती हूं, अब कहीं और आगे जाओ। बहू 122
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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