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________________ जगत का अपरतम संबंध : गुरु-शिष्य के बीच शब्द है, अब उसने अर्थ खो दिया। जब शब्द कोई प्रचलित होता है, लोक-व्यवहार में होता है, तब उसमें प्राण होते हैं। अब चमचागीरी शब्द के लिए बस दूसरा ही एक शब्द है जो उसके करीब आता है, हालांकि उतने करीब नहीं आता, वह है मक्खनबाजी। लगा रहे हैं मक्खन। तो पहली तो बात यह कि मेरे लिए साधारण-असाधारण कुछ भी नहीं है। शब्दों में क्या साधारण-असाधारण! या तो सभी शब्द साधारण हैं, क्योंकि उसको तो किसी शब्द में कहा नहीं जा सकता। सत्य तो किसी शब्द में नहीं आता है, इसलिए सभी शब्द साधारण हैं। या फिर सभी शब्द असाधारण हैं, क्योंकि जो भी कहा जा सकता है, वह सभी शब्दों में कहा जा सकता है। जो शब्द भी बोलते हैं, जिन शब्दों में भी वाणी है, वे सभी असाधारण हैं। मगर वर्गीकरण नहीं करूंगा। अच्छे और बुरे, ऐसे शब्द नहीं हैं। अच्छे और बुरे तुम्हारी धारणा में हैं। तुम्हें तकलीफ हुई होगी, यह मैं मानता हूं। तुम्हें लगा होगा कि जिस व्यक्ति को तुम भगवान कहो, उसने चमचे जैसा शब्द का उपयोग कर लिया! तो तुम अपने भगवान की धारणा को थोड़ा बदलो। तुम्हारे भगवान की धारणा रक्तहीन है, मुर्दा है। तुम अपने भगवान की धारणा में थोड़ा रक्त डालो, थोड़ा जीवन डालो। तुम्हारे भगवान की धारणा शाब्दिक है, कोरी है, प्रज्वलित नहीं है; उसे प्रज्वलित करो; बुझी-बुझी है, आग नहीं है उसमें, तो तुम घबड़ा जाते हो, जरा सा ही एक छोटा सा शब्द और तुम घबड़ा गए! और फिर तुम्हारे भीतर एक गहरी आकांक्षा छिपी रहती है कि अगर मौका मिल जाए, तो तुम मुझसे बदला ले लो। बदला इस बात का कि मैं तुम्हें रोज सलाह देता हूं, तुम्हें मौका मिल जाए तो तुम मुझे सलाह देने का मौका नहीं चूकते। कोई मौका मिल जाए जिसमें तुम्हें मेरी भूल-चूक मिल जाए, तो तुम जल्दी से बताना चाहते हो। __इस बात को बहुत ज्यादा ध्यान में रखने की जरूरत है कि शिष्य को भी शिष्य होने में बड़ी अड़चन रहती है। बनता है शिष्य, मजबूरी में, बनना तो गुरु चाहता है। . सुना है, एक सूफी फकीर के पास एक आदमी आया और उस आदमी ने कहा कि परमात्मा को पाना है। तो सूफी फकीर ने कहा, शिष्य बनना पड़ेगा। तो उसने कहा, शिष्य बनने में क्या-क्या कर्तव्य हैं? क्या-क्या करना होगा? तो फकीर ने कहा कि तीन साल तक तो पूछना ही मत, झाडू लगाना, बुहारी लगाना, गाएं चरा लाना, घोड़ों की देखभाल करना, भोजन बनाना, कपड़े धोना, इस तरह के काम हैं। फिर तीन साल के बाद जो ठीक होगा, हम बताएंगे। तो उसने कहा, यह तो मामला जरा लंबा दिखायी पड़ता है-तीन साल यही करना है! तो और गुरु का क्या कर्तव्य है? शिष्य का तो यह कर्तव्य है, गुरु का क्या कर्तव्य है? तो गुरु ने कहा, गुरु का कर्तव्य है बैठे रहना मस्ती से। लोगों से कहना, यह करो, वह करो, ऐसा करो, इसको वहां भेजो, इसको वहां भेजो। तो उसने कहा, फिर ऐसा करें, मुझे गुरु ही 121
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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