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एस धम्मो सनंतनो
उसने पहले ही साफ कर दिया मामला। उसने चुंगी चुका दी। मजबूरी थी इसलिए चुकानी पड़ी—वह भाग गया, फिर निकल गया।
तुम कहते हो कि 'जैसा लाओत्सू को उस देश के राजा ने चुंगी चुकाए बिना नहीं जाने दिया, उसी प्रकार परमात्मा ने आपको भी मोक्ष के द्वार पर रोककर रखा है।' ।
यहां जरा बात उलटी है। परमात्मा ने मुझे रोककर नहीं रखा है, परमात्मा को मैं रोककर रखा हूं कि जरा, दरवाजा अभी मत खोलना। जहां तक चुकाने का सवाल है, मैंने मूलधन भी चुका दिया है, ब्याज भी, चक्रवृद्धि ब्याज भी चुका दिया है। जितना लिया था उससे बहत ज्यादा चका दिया है। इसलिए परमात्मा मझे रोके, यह तो सवाल ही नहीं है, मैं ही रोककर बैठा हूं कि जरा और, थोड़ा और, और थोड़ा बांट दूं। ___मेरे जाने की नाव तो आकर किनारे लगी खड़ी है, मैं ही समझा-बुझाकर रोक रहा हूं माझी को कि जरा और, ये थोड़े लोग और आ गए हैं, इनको थोड़ा और समझा लूं।
आखिरी प्रश्नः
भगवान, आपने चमचे और चमचागीरी जैसे साधारण शब्दों का उपयोग किया, इससे मेरा मन बहुत दुखी हुआ। ऐसा आपने क्यों किया?
पह ली तो बात, तुम शब्दों में भी शूद्र और ब्राह्मण बनाए बैठे हो! आदमियों
में भी वर्ण बनाए, शब्दों में भी बना लिए! तो चमचागीरी या चमचा तुम्हें लगता होगा शूद्र शब्द हैं, इनका उपयोग नहीं होना चाहिए।
मेरे लिए कोई शूद्र नहीं है, कोई ब्राह्मण नहीं है। रही बात शब्दों की, तो शब्द का अर्थ ही होता है, जो अभिव्यंजक हो। जितना अभिव्यंजक हो। अब चमचे से ज्यादा अभिव्यंजक शब्द खोज सकते हो? इस बात को किसी और शब्द से कह सकते हो? इससे ज्यादा ठीक मौजूं शब्द इस बात को कहने के लिए दूसरा नहीं है। इसलिए शब्द सार्थक है। और तुम सोचते हो नया है, तो तुम गलती करते हो। आदमी जितना पुराना है उतना ही पुराना है। कभी कुछ और कहा होगा, कभी कुछ और कहा होगा, लेकिन चमचागीरी पुराना शास्त्र है। वेद से भी ज्यादा पुराना।। __अगर तुम वेद में भी खोजोगे तो तुम्हें चमचागीरी मिलेगी। इंद्र की प्रशंसा चल रही है, स्तुति चल रही है! वह भी भय के कारण, घबड़ाहट के कारण, लोभ के कारण, कि करोगे प्रशंसा तो तुम्हें कुछ मिल जाएगा, स्तुति चल रही है। स्तुति पुराना
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