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जगत का अपरतम संबंध : गुरु-शिष्य के बीच
छठवां प्रश्न:
लाओत्सू जब अपना देश छोड़कर जा रहे थे, तब देश के राजा ने उन्हें कहलाया कि आपने जो कुछ प्राप्त किया है, उसकी चुंगी चुकाए बिना आप नहीं जा सकते। उसी प्रकार परमात्मा ने आपको भी मोक्ष के द्वार पर रोककर रखा है कि जब तक आप संबोधि का दान औरों को नहीं देते, तब तक आप भी मोक्ष-महल में प्रवेश नहीं कर सकेंगे, यह संदेहरहित बात है, प्रभु!
पूछा है बोधिधर्म ने।
संदेह तो थोड़ा रहा होगा, नहीं तो पूछते नहीं। संदेहरहित बात में पूछना क्या? थोड़ा संदेह होगा। उसी संदेह के कारण यह भी कहा है कि संदेहरहित बात है, नहीं तो यह भी न कहते। ___बात प्यारी है। बात महत्वपूर्ण है। लेकिन थोड़ा सा फर्क है। लाओत्सू को रोका था देश के राजा ने, क्योंकि वह बिना एक पंक्ति लिखे अपने अनुभव की, भागा जा रहा था, हिमालय में जा रहा था। उसने चुन रखा था कि जाकर हिमालय में ही कब्र बने—इससे सुंदर जगह मरने को और हो भी क्या सकती है! तो चीन छोड़कर जा रहा था, 'दक्षिण की तरफ भाग रहा था, उसको राजा ने रुकवा लिया।
राजा भी बड़ा समझदार रहा होगा, इतने समझदार राजा मुश्किल से होते हैं। राजा और समझदार, जरा यह बात साथ-साथ घटती नहीं। समझदार राजा रहा होगा, उसने खबर भेजी, पुलिस के आदमी दौड़ाए, घोड़े दौड़ाए और उसको ठीक सीमा पर रुकवा लिया, चुंगी चौकी पर, जहां से बाहर जाने के लिए आखिरी दरवाजा था।
और रुकवाकर उसने कहा कि जब तक तुम लिख न जाओगे जो तुमने जाना है—उसने जिंदगीभर लिखा नहीं, और जब भी लोगों ने पूछा, टाल दिया; और जब भी बहुत लोगों ने कहा तो उसने इतना ही कहा कि सत्य कहा नहीं जा सकता।
लेकिन राजा ने कहा, अब तुम छोड़कर ही जा रहे हो देश, तो अब बिना कहे न जा सकोगे-लिख दो, जो भी जाना है, फिर जा सकते हो। अगर नहीं लिखा तो बाहर न निकलने दूंगा।
उसे जाना तो जरूर था, मजबूरी में वह चुंगी चौकी पर ही तीन दिन रुका और उसने अपनी अदभुत किताब ताओ तेह किंग लिखी। तीन दिन में लिखी थी. छोटे से सूत्र हैं। जल्दी से उसने लिख-लिखाकर दे दिया। __पहला ही सूत्र उसने लिखा कि सत्य कहा नहीं जा सकता और जो कहा जा सकता है, वह सत्य नहीं होगा; इस बात को ध्यान में रखकर आगे कहता हूं। तो
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