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एस धम्मो सनंतनो
जो व्यक्ति स्वतंत्र हो गया, उसका प्रेम खिल जाता है, उसका फूल खिल जाता है। और जिसका फूल खिल जाता है-चौथी बात-आनंद स्वभाव है। जिसका फूल खिल गया, वह आनंदित है। बिना भीतर के फूल के खिले, कब कोई आनंदित हुआ है?
तो जब मैं कहता हूं, अकेलापन स्वभाव है, स्वतंत्रता स्वभाव है, प्रेम स्वभाव है, आनंद स्वभाव है, तो मैं एक मार्ग की बात कर रहा हूं, वह मार्ग है-ध्यान का मार्ग। उसमें अकेलापन पहले आता, फिर स्वतंत्रता आती, फिर प्रेम आता, फिर आनंद आता।
दूसरा मार्ग है भक्ति का मार्ग। भक्ति के मार्ग में प्रेम पहले आता है. प्रेम स्वभाव है। परमात्मा के प्रति इतने अनन्य प्रेम से भर जाना है कि तुम्हारा मैं-भाव समाप्त हो जाए, तुम्हारा मैं समर्पित हो जाए। और जिसके जीवन में प्रेम आ गया, परमात्मा के प्रति ऐसा समर्पण आ गया, ऐसी प्रार्थना आ गयी कि अपने अहंकार को उसने सब भांति समर्पित कर दिया, उसके जीवन में अनिवार्यरूपेण आनंद आ जाएगा। जो रहा ही नहीं, मैं ही न बचा, वहां दुख कहां? ___ अहंकार दुख है। अहंकार दुख की तरह सालता है, शूल है, जहर है। जहां अहंकार गिर गया भक्त का, वहीं आनंद आ गया। और जहां आनंद आ जाता है, वहां दूसरे की कोई जरूरत नहीं रही।
दूसरे की जरूरत तो दुख में रहती है। तुम जब दुखी होते हो तब तुम दूसरे को तलाशते हो, कोई मिल जाए तो दुख बंटा ले। दूसरे की जरूरत ही दुख में पड़ती है। जब तुम आनंदित हो, तब क्या दूसरे की जरूरत है!
तो जो व्यक्ति प्रेम को उपलब्ध हुआ, आनंद को उपलब्ध हुआ, वह अकेलेपन को उपलब्ध हो जाता है। उसको कोई जरूरत नहीं दूसरे की। और जो अकेला है, वही स्वतंत्र है, वही स्वच्छंद है।
तो यह दूसरा सूत्र भक्ति का प्रेम स्वभाव है। प्रेम से पैदा होता आनंद। आनंद स्वभाव है, आनंद से पैदा होता एकाकीपन, अकेलापन, एकांत, तो अकेलापन स्वभाव है। और अकेलापन यानी स्वतंत्रता, स्वच्छंदता।
किसी भी मार्ग से चलो। दो ही मार्ग हैं। या तो शुद्धरूप से अकेले बचो, तो तुम पहुंच जाओगे। या अपने को बिलकुल गंवा दो, खो दो, तो तुम पहुंच जाओगे। या तो मिट जाओ, तो पहुंच जाओगे, शून्य हो जाओ, तो पहुंच जाओगे। या पूर्ण हो जाओ, तो पहुंच जाओगे। ___ जैन और बौद्ध चलते हैं ध्यान से-अकेले हो गए। मैं को शुद्ध करते हैं, शुद्ध करते हैं, परिपूर्णता पर लाते हैं। हिंदू, मुसलमान, ईसाई चलते हैं प्रेम से-अपने को समर्पित करते हैं। समर्पण में अहंकार धीरे-धीरे खो जाता है, रेखा भी नहीं बचती। जिस दिन अहंकार खो जाता है, उसी दिन परमात्मा प्रगट हो जाता है।
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