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________________ जगत का अपरतम संबंध : गुरु-शिष्य के बीच कौन है कहने वाली! ___ औपचारिकता पर उलझे हो अगर तुम मेरे पास, तो तुम्हारी दशा दयनीय है। औपचारिकताएं छोड़ो। यहां कोई शिष्टाचारों के नियम पूरे नहीं किए जा रहे हैं, यहां किसी क्रांति की तैयारी हो रही है। बड़ा झंझावात है। उसमें बहुत कुछ उखड़ जाना है। तुम्हारे सब नियम-धर्म उखड़ जाने हैं। फिर अगर देखने की क्षमता हो, तो हर चीज में कुछ अर्थ दिखायी पड़ेगा और देखने की क्षमता न हो तो बड़े-बड़े शब्दों में भी कुछ नहीं है। तुम्हारे विचार के लिए यह बटरिंग-व्रत कथा तुमसे कहता हूं मंगलम् इमीजिएट बासे, मंगलम् बटरिंग-व्रताय। मंगलम् चमचाय चम्पी, मंगलम् फल प्राप्ताय।। अथ चमचाय उवाचः जेहिके स्रवनहिं मात्र से कटहिं कलेस-विकार तिहि बटरिंग-व्रत की कथा सुनहिं क्लर्क नर-नारि, हंसा भूखे मर रहे, कौवों के हैं ठाठ हरिश्चंद्र की हो गयी आज खड़ी फिर खाट, एक पंक्ति में दे रहा बटरिंग-व्रत का सार मक्खन मालिश के बिना है यह व्रत बेकार, जो भी तेरा है आफीसर उसके पांव पकड़ ले प्यारे! उसकी पत्नी के चरणों को उनके साथ जकड़ ले प्यारे! . आते हुए सलाम मार दे जाते हुए सलाम मार दे बिछा पलंग पर चद्दर-दरियां पहुंचा सब्जी की टोकरियां त्यौहारों पर भेज मिठाई उपहारों की कर सप्लाई कुछ ही दिन ऐसा करने से तुझे तरक्की मिल जाएगी, तेरी किस्मत की यह खिड़की खुलते-खुलते खुल जाएगी, बटरिंग की महिमा अनंत, मोसों लिखी न जाए, सुख भोगे इहलोक नर, अंत बास-पद पाय। 123
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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