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एस धम्मो सनंतनो
जगाना नींद से तो ठीक नहीं है। जब उसने ऐसा सोचा तो हैरान हुआ, कोई दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। दरवाजा खोला तो गुरु सामने खड़े हैं।
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गुरु ने कहा, तो अरे नासमझ, तू क्या सोचता था कि तुझे ज्ञान होगा और हम सोए होंगे! इतनी बड़ी घटना घट रही हो - जब तेरे साथ साथ जोड़ दिया तो सब तरह जुड़ गए - तुझे इतनी बड़ी घटना घट रही हो और हम सो सकते हैं! और क्या तू सोचता है तुझे पहले पता चलेगा, फिर हमें पता चलेगा ?
तुम चकित होओगे जानकर कि पश्चिम में बहुत से प्रयोग चल रहे हैं - मां और बच्चों के बीच में कोई एक अज्ञात सूत्र रहता है। जैसे जब बच्चा पैदा होता है मां के पेट से तो जुड़ा रहता है, बच्चे की नाभि मां के पेट से भौतिक रूप से जुड़ी रहती है, डाक्टर उसे काटता है। लेकिन एक और कोई स्वर्णसूत्र है जो जुड़ा ही रहता है, जिसको काटा, नहीं जा सकता। इस पर बहुत प्रयोग चले हैं, विशेषकर सोवियत रूस में बहुत प्रयोग हुए हैं और बड़ी हैरानी के परिणाम आए हैं।
वे प्रयोग ये हैं कि अगर बच्चे और मां में बहुत लगाव हो, तो तुम हजारों मील दूर ले जाकर बच्चे को सताओ, मां को अनुभव होने लगता है कि बच्चा सताया जा रहा है, उसे कुछ तकलीफ शुरू हो जाती है। वह बेचैन होने लगती है।
फिर आदमी तो बहुत विकृत हो गया है, इसलिए पशुओं पर प्रयोग किए गए। एक बिल्ली को ऊपर छोड़ दिया गया घाट पर और उसके छोटे बच्चे को एक पनडुब्बी में समुद्र की गहरी सतह में ले जाया गया - -मीलभर नीचे । और यह जो ऊपर बिल्ली छोड़ी गयी है, इस पर सब यंत्र लगाकर रखा गया है कि इसके मन की दशा का पता चलता रहे, कब यह परेशान होती है, बेचैन होती हैं—छोटी सी भी बेचैनी । और जैसे ही उस बच्चे को नीचे सताया गया, उसकी गर्दन मरोड़ी गयी कि वह एकदम परेशान होने लगी। एक मील का फासला है, पानी की अतल गहराई में बच्चा है! जैसे ही उसकी गर्दन छोड़ी गयी, वह फिर ठीक हो गयी। फिर गर्दन दबायी गयी, वह फिर परेशान हो गयी। फिर तो इस पर बहुत प्रयोग किए गए हैं और यह अनुभव में आया कि जहां प्रेम है, वहां एक स्वर्णसूत्र जोड़े रखता है।
तो यह तो मां और बच्चे की बात है, तुम गुरु और शिष्य की बात तो पूछो ही मत। क्योंकि यह प्रेम तो कुछ भी नहीं है उस प्रेम के मुकाबले । यह तो शरीर का ही प्रेम है । गुरु और शिष्य के बीच तो एक आत्मिक नाता है, आत्मा का एक संबंध है। जिस दिन तुम्हें ज्ञान होगा, तुम सोचते हो तुम्हें पहले पता चलेगा ? तो तुमने गलत ही सोचा। तुम्हारे गुरु को तुमसे पहले पता चल जाएगा । और यह भी हो सकता है कि तुम्हें धन्यवाद देने का गुरु मौका न दे, तुम्हें तुम्हारे धन्यवाद देने के पहले धन्यवाद दे ।
इस चिंता में पड़ो मत। असली चिंता दूसरी ही है कि कैसे उसे पा लो । धन्यवाद गैर-धन्यवाद तो शिष्टाचार - - उपचार की बातें हैं ।
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