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जगत का अपरतम संबंध : गुरु-शिष्य के बीच
कि अगर कहा, है, तो एक तमाचा मारूंगा, अगर कहा, नहीं है, तो भी एक तमाचा मारूंगा, बोलो। ___तो वह महिला तो थोड़ी घबड़ायी कि इसका अनुवाद करना कि नहीं! और उसने भी चौंककर देखा कि यह बात क्या है? और उस फकीर ने कहा, अनुवाद कर, नहीं तो तू नाहक पिटेगी। तो घबड़ाकर उसने अनुवाद कर दिया। जब यह अनुवाद मुक्तानंद ने सुना तो वह तो बहुत घबड़ा गए कि यह कौन सी तत्वचर्चा है ? तो उन्होंने कहा, आप कोई दार्शनिक नहीं मालूम होते, यह कौन सी तत्वचर्चा है? ___मगर यह तत्वचर्चा है। झेन फकीर यह कह रहा है कि हां कहो तो गलत, न कहो तो गलत। क्योंकि हां कहो तो द्वैत आ गया, न कहो तो द्वैत आ गया। दोनों हालत में चांटा मारूंगा। अगर हां कहा तो चांटा मारूंगा, न कहा तो चांटा मारूंगा। वह यह कह रहा है कि दोनों हालत में तुमने गलती की। क्योंकि परमात्मा के संबंध में न तो हां कहा जा सकता है, न न कहा जा सकता है। चुप्पी ही, मौन ही एकमात्र सही उत्तर है। लेकिन इससे तो बात बिगड़ गयी। यह चांटा मारने की बात तो कुछ जंची नहीं। तो झेन फकीर ने लिखा है अपनी डायरी में कि बाबा ने जल्दी से घड़ी देखी और कहा कि मुझे दूसरी जगह जाना है। बस सत्संग समाप्त हो गया! ___ हर परंपरा के अपने ढंग होते हैं। लेकिन परंपरागत ढंग सीख लेने से कुछ सार नहीं है। तिब्बत में जब ज्ञान हो जाए तो एक ढंग होता गुरु को धन्यवाद देने का, लेकिन अगर ढंग सीख रखा परंपरा से तो ढंग ही झूठा है। यह काम थोड़े ही आएगा।
तो तुम यह तो पूछो ही मत कि कैसे धन्यवाद दोगे। तुम तो इसकी ही फिकर करो, धन्यवाद की क्या फिकर है, न भी दिया तो चलेगा! ___पूछा है, स्वामी स्वरूप सरस्वती ने। और मैं तुमसे कहे देता हूं, धन्यवाद दिया तो एक चांटा मारूंगा और नहीं दिया तो भी मारूंगा। धन्यवाद की तो फिकर छोड़ो, परमात्मा को पा लेने का सवाल है। उसको पा लिया तो धन्यवाद हो गया। तुम आओगे और धन्यवाद हो जाएगा, तुम बैठोगे और धन्यवाद हो जाएगा। तुम न आए तो भी धन्यवाद आ जाएगा। तुमने कहा कि नहीं कहा, फिर अर्थहीन है। तुम्हारा होना कह देगा।
जब गुरु देखता है कि किसी शिष्य को हो गया, तो क्या तुम सोचते हो तुम बताओगे तब उसे पता चलेगा? तब तो गुरु ही नहीं है। तुम्हारे बताने से पता चला तो फिर क्या खाक गुरु है! सच तो यह है कि जब तुम्हें होगा, तुम्हारे होने के पहले, तुम्हें पता चलने के पहले गुरु को पता चल जाएगा कि हो रहा है।
रिझाई के संबंध में ऐसी कहानी है कि जब उसे ज्ञान हुआ तो रात के दो बजे थे। बैठा था ध्यान में, अचानक सब द्वार-दरवाजे खुल गए। कर रहा था मेहनत कोई बारह वर्षों से। जब द्वार-दरवाजे खुल गए दो बजे रात, तो उसके मन में खयाल आया कि जाऊं और अपने गुरु के चरणों में सिर रखें। लेकिन दो बजे रात, उनको
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