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एस धम्मो सनंतनो
कोई लमहा कभी ऐसा भी गुजर जाता है कोई लमहा, एक क्षणभर को, एक पलभर को आंख खुल जाती है, फिर बंद हो जाती है, लेकिन वह एक पल जीवन को बदल देने वाला पल सिद्ध होता है।
पूछते हो, 'किसी बुद्धपुरुष के वचनों के मार्मिक अर्थ को समझ पाना क्या ध्यान को उपलब्ध हुए बिना संभव है?' ___ हां भी और नहीं भी। हां इस अर्थ में कि झलक मिलती है, एक किरण सी उतरती है। एक उमंग जग जाती है, एक प्यास उठने लगती है, एक अज्ञात खिंचाव पैदा हो जाता है, इसलिए हां। और नहीं इसलिए कि सुनकर ही कहीं पूरी बात थोड़े ही हो जाती है। चलना पड़ेगा, उठना पड़ेगा, बदलना पड़ेगा, बहुत कूड़ा-करकट है वह जला देना पड़ेगा। आग से गुजरना होगा, ताकि सोना निखर जाए।
बुद्धपुरुषों की बात सुनकर यात्रा शुरू होती है, मंजिल नहीं आ जाती। मंजिल तो आएगी तभी जब ध्यान पूरा होगा। और जब ध्यान पूरा होगा, तभी पूरी बात भी समझ में आएगी। क्योंकि पूरी बात समझने का एक ही अर्थ हो सकता है कि जो उनका अनुभव था, वह मेरा भी अनुभव हो गया। जब अनुभव एक जैसे हो जाते हैं, तभी बात समझ में आती है।
चौथा प्रश्नः
भगवान, जिस दिन मैं पा लूंगा उस दिन कैसे आपको धन्यवाद दूंगा?
अव अभी से व्यर्थ की फिकर में मत पड़ो। जब पा लेने जैसी अपूर्व घटना घट
जाएगी तो धन्यवाद भी खोज ही लोगे। यह तो छोटी सी बात रही! उतनी बड़ी बात हो जाएगी तो क्या तुम सोचते हो धन्यवाद देने का कोई ढंग न खोज पाओगे? भगवान को खोज लोगे और धन्यवाद देने का ढंग न खोज पाओगे? ____ हो ही जाएगा। तुम इसकी फिकर मत करो। और अभी से कोई अभ्यास थोड़े ही करना है कि धन्यवाद का अभ्यास करोगे। अभ्यास करोगे तो झूठा होगा। और झूठा अभ्यास अगर रहा, तो उस मौके पर भी शायद झूठे अभ्यास से ही धन्यवाद दोगे। उस धन्यवाद को तो कम से कम स्वस्फूर्त रहने दो, उसकी तो तैयारी मत करो। उसका तो रिहर्सल मत करो। __मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन रेलयात्रा से वापस लौटा तो मुझसे कहने लगा कि रास्ते में एक टिकिट चेकर उसे बड़े अजीब ढंग से घूर रहा था। तो मैंने पूछा, अजीब ढंग से, क्या मतलब तुम्हारा, नसरुद्दीन? तो उसने कहा कि यानी वह ऐसे घूर रहा था जैसे
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