SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जगत का अपरतम संबंध : गुरु-शिष्य के बीच हैं, स्वस्थ भी होते हैं। बूढ़े हो गए तो बाल भी सफेद हो गए, बूढ़े हो गए तो हाथ-पैर भी कंपने लगे, यह सब तुम जैसा ही है। लेकिन तुम जैसे इस मनुष्य में भी कुछ घटा है, जो तुममें लगता है अभी नहीं घटा। इससे हिम्मत बंधती है कि अगर मेरे जैसे व्यक्ति में यह हो सका है, तो शायद मुझमें भी हो सके। शायद मैं भी एक संभावना अपने भीतर लिए चल रहा हूं, एक बीज, जिसको ठीक भूमि नहीं मिली। शायद मैं भी अपने भीतर एक संभावना लिए चल रहा हूं, जिस पर मैंने कभी प्रयोग नहीं किया और वास्तविक बनाने की चेष्टा नहीं की। किसी गायक को गीत गाते देखकर तुम्हें याद आ जाती है अपने कंठ की कि कंठ तो मेरे पास भी है। और किसी नर्तक को नाचते देखकर तुम्हें याद आ जाती है अपने पैरों की कि पैर तो मेरे पास भी हैं, चाहूं तो नाच तो मैं भी सकता हूं। किसी चित्रकार को चित्र बनाते देखकर तुम्हें भी याद आ जाती है कि चाहूं तो चित्र मैं भी बना सकता हूं। ऐसे ही किसी बुद्ध को देखकर तुम्हें याद आ जाती है कि चाहूं तो बुद्धत्व मैं भी पा सकता हूं। बस यही चाह—यह समझ नहीं है पूरी-प्यास शुरू हुई। उजाला-सा बिखर जाता है। चाहे जैसा भी हो हर वक्त गुजर जाता है बात रह जाती है पर ढेर बिखर जाता है गम में वैशाख के सूरज की तपन होती है ऐसे मौसम में समंदर भी उतर जाता है रोज दिनभर तो अंधेरों में सफर करते हैं शाम होते ही उजाला-सा बिखर जाता है टूट जाता है हर एक तसलसुल यारो कोई लमहा कभी ऐसा भी गुजर जाता है कोई उम्मीद किरण बनके चमक उठती है दिल से कुछ देर को हर बोझ उतर जाता है उजाला-सा बिखर जाता है। कोई उम्मीद किरण बनके चमक उठती है बुद्धपुरुषों के पास, तीर्थंकरों के पास, सदगुरुओं के पास, परमहंसों के पास, सूफियों के पास- . कोई उम्मीद किरण बनके चमक उठती है दिल से कुछ देर को हर बोझ उतर जाता है कुछ देर को ही, क्षणभर को ही सही, कोई पूरा सूरज नहीं ऊगता, लेकिन एक किरण कौंध जाती है। लेकिन उस किरण में तुम्हें अपना भविष्य दिखायी पड़ जाता है कि यह हो सकता है। टूट जाता है हर एक तसलसुल यारो 111
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy