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________________ एस धम्मो सनंतनो तभी समझ में आएगा, तब तो तुम ध्यान भी कैसे करोगे? क्योंकि बुद्धपुरुषों में कुछ रस आने लगे तभी तो ध्यान में लगोगे न! तो बुद्धपुरुषों की वाणी सुनते समय पूरी तो समझ में नहीं आती-कभी नहीं आती-पूरी तो तभी समझ में आएगी जब तुम भी बुद्धपुरुष हो जाओगे। जब तुम भी उन जैसे हो जाओगे तभी पूरा अनुभव होगा। लेकिन अभी थोड़ी भनक तो पड़ सकती है। __जब छोटा बच्चा चलना शुरू करता है तो अभी दौड़ नहीं सकता, यह बात सच है, लड़खड़ा तो सकता है! और अगर तुम कहो कि अभी लड़खड़ा भी नहीं सकता, तब तो फिर कभी चल ही न सकेगा। छोटा बच्चा जब पहले कदम उठाता है, तो देखा कैसा डरा-डरा, सहारे की आकांक्षा रखता है, मां हाथ पकड़ ले, मां का हाथ पकड़कर हिम्मत करके दो कदम चल लेता है। छोटे बच्चे के पास पैर तो हैं, उसके शरीर को सम्हालरेयोग्य काफी पैर हैं—तुम्हारे बराबर पैर नहीं, तो तुम्हारे बराबर शरीर भी नहीं है, लेकिन अनुपात ठीक उतना ही है जितना तुम्हारा। तुम्हारे बड़े शरीर को सम्हालने के लिए बड़े पैर हैं, उसके छोटे शरीर को सम्हालने के लिए छोटे पैर हैं। लेकिन उसके शरीर को सम्हालने के लिए पर्याप्त पैर हैं। मगर अभी अनुभव नहीं है, उसे यह भरोसा नहीं है कि मैं खड़ा हो सकूँगा; उसे यह आत्मविश्वास नहीं। तो मां का हाथ पकड़कर चल लेता है। गुरु का हाथ पकड़कर चलने का इतना ही अर्थ होता है कि जहां तुम अभी नहीं चले हो–यद्यपि चल सकते हो, लेकिन तुमने कभी प्रयास नहीं किया है तो कोई जो चल चुका है, कोई जो चल रहा है, तुम उसका हाथ पकड़ लेते हो। फिर धीरे-धीरे मां अपना हाथ छुड़ाने लगती है, फिर अंगुली ही पकड़ा रखती है, फिर धीरे-धीरे अंगुली भी खींच लेती है। एक दिन बच्चा पाता है कि अरे, वह तो खुद ही खड़ा होकर चल सकता है! जब पहली दफे बच्चे चलते हैं, तो तुमने देखा, वे रुकते ही नहीं, वे बैठते ही नहीं। तुम लाख उपाय करो कि अब तू थक गया है, अब तू बैठ जा, मगर वे चक्कर मार रहे हैं! इतना आनंद उनको अनुभव होता है कि एक अपूर्व घटना हाथ लग गयी, कि मैं भी चल सकता हूं! ऐसी ही घटना ध्यान के मार्ग पर भी घटती है। बुद्धपुरुषों की वाणी पहले तो सिर्फ झलक देगी, जरा सी देर के लिए बिजली कौंध जाएगी, एक किरण उतर जाएगी। मगर किरण तुम्हें प्यास से भर जाएगी, और तुम्हें यह आश्वासन मिलने लगेगा-हो सकता है, ऐसा भी हो सकता है। इस व्यक्ति को हुआ है, तो मुझे क्यों नहीं हो सकता? मुझ जैसे ही व्यक्ति को तो हुआ है। ___आखिर बुद्ध के हड्डी-मांस-मज्जा तुम्हारे जैसे ही हैं, कुछ भेद तो नहीं। तुम्हारे जैसे आंख-कान-नाक, तुम जैसे भूख लगती तो भोजन करते, और तुम जैसे रात थककर सो भी जाते, तुम जैसे ही जवान हुए, तुम जैसे ही बूढ़े हुए, तुम जैसे ही एक दिन मर भी गए, तो बुद्धपुरुष ठीक तुम जैसे हैं। बीमार भी होते हैं, रुग्ण भी होते 110
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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