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________________ जगत का अपरतम संबंध : गुरु-शिष्य के बीच सकोगे। एक पत्ता तोड़ लो इस बगीचे का और सारे जंगल खोज डालो, ठीक वैसा ही दूसरा पत्ता न पा सकोगे। परमात्मा कार्बन कापी बनाता ही नहीं। परमात्मा मूल बनाता है, मौलिक, प्रत्येक.वस्तु नयी और अद्वितीय। तो जब छोटी-छोटी चीजों के संबंध में यह सच है, तो क्राइस्ट, या मोहम्मद, या महावीर, या बुद्ध जैसे व्यक्ति तो परम, आखिरी हैं। ये तो अद्वितीय हैं। इन जैसा दूसरा कोई होता नहीं, नकल में पड़ना मत। किसी जैसे बनने की कोशिश करना मत। तुम तुम ही बन सको तो ही तुम परमात्मा को उपलब्ध हो सकोगे। और जब तुम अपनी परिपूर्णता में स्वयं हो जाते हो, तब तुम्हारे भीतर एक नाद उठने लगता है, वह नाद है-अहं ब्रह्मास्मि, अनलहक। फिरआन गलत कहता था। क्योंकि उसने यह कहा कि मैं परमात्मा हं, और कोई नहीं। और मंसूर ने ठीक कहा कि मैं परमात्मा हूं, क्योंकि सिर्फ परमात्मा है। और तो कोई है ही नहीं, परमात्मा ही है। पत्थर भी परमात्मा है। तो मैं भी परमात्मा हूं। इन दोनों वक्तव्यों की समानता के साथ-साथ इनके भीतर छिपा हुआ भेद भी ठीक से देख लेना। तीसरा प्रश्नः किसी बुद्धपुरुष के वचनों के मार्मिक अर्थ को समझ पाना क्या ध्यान को उपलब्ध हुए बिना संभव है? क्या तत्वज्ञान और ध्यान की स्थिति के बीच कोई गहरा नाता है? इस विषय पर प्रकाश डालने का अनुग्रह करें। कि सी बुद्धपुरुष के वचनों को पूरा-पूरा समझना हो, तब तो ध्यान के बिना कोई उपाय नहीं है। लेकिन थोड़ी-थोड़ी झलक मिल सकती है ध्यान के बिना भी। थोड़ी-थोड़ी भनक पड़ सकती है बिना ध्यान के भी। और अगर यह भनक न पड़ती होती तो फिर तुम चलोगे ही कैसे! तब तो तुम कहोगे, जब ध्यान होगा तब समझ में आएगा, और जब तक समझ में नहीं आया तब तक चलें कैसे? और जब तक चलोगे नहीं तब तक ध्यान कैसे होगा! तब तो तुम एक बड़े चक्कर में पड़ जाओगे, एक दुष्चक्र में पड़ जाओगे।। तो दो बातें खयाल रखना। न तो यही बात सच होती है कि जो बुद्धपुरुष कहते हैं, वह तुमने सिर्फ सुन लिया बुद्धि से और समझ में आ जाएगा। नहीं, अगर इतने से ही समझ में आ जाए तो फिर ध्यान की कोई जरूरत ही न रहेगी। और न ही दूसरी बात सच है कि जब ध्यान होगा तभी समझ में आएगा। क्योंकि अगर ध्यान होगा 109
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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