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एस धम्मो सनंतनो
तुम पचहत्तर साल जीओगे तो तुम्हारी पत्नी अस्सी या बयासी साल जीएगी। अब तुम पांच-सात साल छोटी उम्र की स्त्री से विवाह करोगे, तो तुम्हारे मरने में, तुम्हारी पत्नी के मरने में दस साल का फासला होगा। तुम दस साल के लिए उसे विधवा छोड़ जाओगे। यह अवैज्ञानिक है।
अगर विज्ञान की बात समझो तो तुम्हें अपने से पांच-सात साल उम्र बड़ी स्त्री से विवाह करना चाहिए, ताकि तुम दोनों करीब-करीब संसार से विदा होओ। पचहत्तर साल के तुम होओगे, अस्सी की वह हो जाएगी, दोनों करीब-करीब मरोगे। ज्यादा दुख नहीं होगा, न तुम अकेले छूटोगे, न वह अकेली छूटेगी।
मोहम्मद ने बड़ी हिम्मत की कि अपने से बड़ी उम्र की स्त्री से विवाह कर लिया। मोहम्मद की परिस्थिति अलग, मोहम्मद के सोचने के ढंग अलग, मोहम्मद की बात अलग। फिर मोहम्मद जिन लोगों से बोल रहे थे, वे लोग बिलकुल ही खानाबदोश, एकदम गैर-पढ़े-लिखे लोग। उनको तो छुड़ाना था अभी मूर्ति से, अभी तो उनका सबसे बड़ा उपद्रव यही था कि वे मूर्तियों की पूजा में लगे थे। और एक-दो मूर्ति की नहीं, तीन सौ पैंसठ मूर्तियां बना रखी थीं काबा में। एक दिन के लिए एक मूर्ति। हर दिन नयी मूर्ति की पूजा चल रही थी। अभी तो वे बहुत नीचे धर्म में पड़े थे, उनको मूर्ति से किसी तरह छुटकारा दिलाना था। अभी उनसे यह घोषणा करनी कि अहं ब्रह्मास्मि, वह बात ही पागलपन की होती। यह तो वे समझ ही नहीं पाते, यह तो पाठ बहुत आगे का है।
यह तो भारत में संभव हो सका, क्योंकि इस पाठ के लिए काफी लंबी परंपरा चाहिए, हजारों साल की परंपरा चाहिए। यह तो धर्म के विश्वविद्यालय की आखिरी कक्षा है, जहां घोषणा की जा सकती है-अहं ब्रह्मास्मि, और लोग समझेंगे और नाराज न हो जाएंगे। ___ तो अलग परिस्थितियां, अलग व्यक्तित्व, अलग ढंग। जैन राजी नहीं होगा कि मोहम्मद ज्ञान को उपलब्ध हुए। और मुसलमान राजी नहीं होंगे कि यह महावीर ज्ञान को उपलब्ध हुए। ये नंगे खड़े हो गए! यह बात तो जंचती नहीं, यह तो ठीक नहीं है, यह तो अशिष्ट है। यह तो असामाजिक है। कोई किसी दूसरे के संत से तो राजी नहीं होता, क्योंकि तुम्हारे संत की एक निश्चित धारणा है। ___ मैं तुमसे कहना चाहता हूं, सब धारणा छोड़कर तुम शून्य भाव से, शांत भाव से, मौन भाव से देखो, तो तुम चकित हो जाओगे-मोहम्मद भी उसी महिमा को उपलब्ध हुए जिसको महावीर; बुद्ध भी उसी को उपलब्ध हुए जिसको क्राइस्ट। ये अलग ढंग हैं। अलग ढंग होने ही चाहिए। और एक व्यक्ति एक ही बार होता है, दुबारा दोहराया नहीं जाता है।
परमात्मा इस संसार में किसी को दोहराता नहीं। आदमियों की तो छोड़ दो, तुम एक कंकड़ उठा लो और सारी पृथ्वी खोज डालो, तो भी वैसा ही दूसरा कंकड़ न पा
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