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एस धम्मो सनंतनो
संत को तुमने जानना सीखा, देखना सीखा, जब तुम्हें हिंदू का संत हो, कि मुसलमान का, कि ईसाई का, कि बौद्ध का, सभी का संत पहचान में आने लगे, तब तुम समझे कि संत क्या है। और तब जो संतोष मिलेगा, वह संक्रांति है, वह तुम्हें रूपांतरित कर जाएगी, वह तुम्हें नया कर जाएगी, वह तुम्हें द्विज बना देगी, एक नया जन्म देगी।
निश्चित ही यह बात असंतों की वाणी में कैसे हो सकती है! वाणी खाली, कोरी, वहां कुछ प्राण कहां। पिंजड़ा है, पक्षी तो नहीं। तो पिंजड़ों को लिए तुम चलते रहो। लेकिन बहुत बार ऐसा होता है कि लोग पिंजड़ों को लिए ही चलते रहते हैं और मानकर चलते हैं कि पक्षी है। होना चाहिए, क्योंकि बाप ने कहा, क्योंकि बाप के बाप ने कहा। होना चाहिए, क्योंकि भीड़ कहती है, समाज कहता है, मौलवी कहता है, पंडित कहता है, होना चाहिए। अपनी तरफ से नहीं देखते कि है या नहीं। डरते भी हो कि कहीं ऐसा न हो कि न हो, इसलिए देखते ही नहीं। अपने पिंजड़े को खूब ढांककर रखते हो कि कहीं दिखायी न पड़ जाए।
तुम्हें भी कभी-कभी शक तो आता होगा कि है या नहीं, लेकिन यह शक तुम टिकने नहीं देते। तुम कहते हो, शक तो अच्छी बात नहीं। होना चाहिए ही। कोई माता-पिता झूठ तो न बोलेंगे। पंडित-पुरोहित झूठ तो न बोलेंगे। समाज-परिवार झूठ तो न बोलेगा। ये सब लोगों को झूठ बोलने में क्या रखा है! ये क्यों झूठ बोलेंगे सब! होना ही चाहिए। तो तुम कभी उठाकर देखते भी नहीं पर्दा कि पीछे कोई है कि तुम खाली मंदिर की पूजा कर रहे हो?
तुम्हारे सौ संतों में से निन्यानबे खाली मंदिर हैं, जिनके भीतर कुछ भी नहीं है। लेकिन उनकी पूजा चल रही है। अक्सर तो ऐसा होता है कि जिनके भीतर कुछ है, उनकी पूजा बहुत मुश्किल हो जाती है। क्योंकि जिनके भीतर कुछ है, वे तुम्हारी धारणाएं तोड़ देते हैं। जिनके भीतर कुछ है, वे तुम्हारे गुलाम थोड़े ही हैं। वे तुम्हारी लीक पर थोड़े ही चलते हैं। जिनमें कुछ नहीं है, वे ही लीक पर चलते हैं। उधार वही होता है जिसके पास अपनी नगद संपदा नहीं। उधारी ऊपर-ऊपर से ठीक लगती हो, भीतर-भीतर अर्थहीन होती है।
मैंने सुना, एक बड़े धनपति यहूदी के घर के सामने–यहूदी बैठा है अपने महल में उसके दरवाजे पर, लोहे के सींकचों का बना दरवाजा है, एक फकीर, एक गरीब आदमी अपनी पीठ खुजला रहा है। दरवाजे के सींकचों से अपनी पीठ खुजला रहा है। उस अमीर को बड़ी दया आयी। उसने फकीर को भीतर बुलाया, अपने नौकरों को आज्ञा दी कि इसे खूब स्नान करवाओ, खूब धो-धोकर मालिश करो इसकी। उसको खूब धुलवाया गया, खूब स्नान करवाया गया। ऐसे साबुन जो उसने कभी देखे भी न थे, पानी के फव्वारे के नीचे बिठाया गया, ठंडे-गरम पानी में नहलाया गया, इत्र-फुलेल, तेल से उसकी मालिश की गयी, अच्छे कपड़े पहनाए
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