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एस धम्मो सनंतनो
रंग ऐसा भरो जिसकी आहट में भी प्यार ही प्यार हो सबकी आंखों में हो सबकी सांसों में हो सबकी साधों में हो एक ही बस गगन एक ही बस लगन डोर ऐसी गहो जिसकी गांठों में बस प्यार ही प्यार हो रंग ऐसा भरो न रंग नफरत का हो न रंग मजहब का हो रंग ऐसा भरो जिसके छींटों में बस
प्यार ही प्यार हो तो तुम देख पाओगे, सत्य क्या है। संत का अर्थ होता है, जहां सत्य अवतरित हुआ है। संत का अर्थ होता है, जहां सत्य ने देह धरी। संत का अर्थ होता है, जिस देह में सत्य सिंहासन पर विराजमान हुआ। अगर तुम निष्पक्ष मन, कोरे मन, शून्य मन संत के पास जाओगे, परम संतोष होगा। और संतोष ऐसा कि फिर मिटेगा नहीं। संतोष धारणा का नहीं, मान लिया ऐसा नहीं, सांत्वना जैसा नहीं, संतोष अनुभव का, सुख के अनुभव का। और वैसा संतोष तुम्हें भी संत बनाने लगेगा। रंगे जाने लगोगे। उस रंग में डूबने लगोगे।
यहां ऐसे ही रंग को भरने की कोशिश चल रही है, ऐसे ही रंग को रंगने की कोशिश चल रही है।
पानी से धुल जाएं ऐसे भी रंग क्या, एक उमर रंग जाए ऐसा रंग डालो। जैसा था बचपन में जैसा था यौवन में माटी का रंग अभी वैसा ही है, पलकों के आसपास
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