________________
जगत का अपरतम संबंध : गुरु-शिष्य के बीच भी तुम्हारी नींद को नहीं तोड़ सकते। कितने तो संत हुए, तुम सोए हो तो सोए ही हो। कितने तो संत हुए सदियों सदियों में, तुम जहां हो वहीं के वहीं हो, तुम वहां से हटते नहीं। फूल खिलते हैं, विदा हो जाते हैं, पत्थर अपनी जगह पड़े हैं, पड़े ही रहते हैं। वे फूलों की सुनते नहीं । न सुनने के पीछे कारण हैं । कारण यही है कि तुम्हारे कान पहले से भरे हुए हैं।
अगर तुमने मुसलमान की तरह सोचा, तो तुमने सोचा ही नहीं। अगर हिंदू की तरह सोचा, तो सोचा ही नहीं। अगर जैन की तरह सोचा, तो सोचा ही नहीं । सोचने वाला आदमी पहले तो ये सब लिबास उतारकर रख देता है; भूल ही जाता है कि मैं
हूं। अभी पता ही नहीं है कि मैं कौन हूं, तो ये ऊपर-ऊपर की बातें ! किसी घर में पैदा हो गए वह मुसलमान था, हिंदू था, ईसाई था, यह तो सब संयोग की बात है। उस घर में पैदा हो गए, उस घर के लोगों को जो मालूम था उन्होंने तुम्हें सिखा दिया । न उन्हें मालूम था, न तुम्हें मालूम है; उनके मां-बाप उन्हें सिखा गए थे, उन्हें मालूम था । ऐसी सिखावन चलती जाती है, संस्कार चलते जाते हैं।
न
बुद्ध का वचन है कि संस्कार में दुख है। ये संस्कार हैं, हिंदू होना, मुसलमान होना, जैन होना, ईसाई होना संस्कार हैं। कंडीशनिंग। मां-बाप तुम्हारे सिर में भरना शुरू कर देते हैं कि तुम मुसलमान हो, कुरान तुम्हारी किताब है, मोहम्मद तुम्हारा पैगंबर है; कि तुम हिंदू हो, कि वेद तुम्हारी किताब है; कि तुम ईसाई हो, कि बाइबिल तुम्हारी किताब है; ऐसा मां-बाप भरना शुरू कर देते हैं - छोटा बच्चा, कोमल चित्त, ये सारी बातें इकट्ठी होती चली जाती हैं। सोच-विचार पैदा होने के पहले ही मन पर खूब संस्कार और जमघट जम जाता है, भीड़ पैदा हो जाती है। फिर जीवनभर आदमी उन्हीं संस्कारों से देखता है।
तो तुमसे मैं कहूंगारंग ऐसा भरो
न रंग नफरत का हो
न रंग मजहब का हो
रंग ऐसा भरो
जिसके छींटों में बस
प्यार ही प्यार हो
दूरियां सब मिटें पास इतने मिलें
एक छाया बने
तन से तन भी मिले मन से मन भी मिले
पांव ऐसे ध
101