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________________ एस धम्मो सनंतनो लिए। फिर दस्तखत कर दिए कि ठीक है, यह आदमी अपराधी है और इसको जो भी सजा उचित हो दी जाए। तब मंसूर को सूली लगी। सूफी छिपाए रखे, क्योंकि मुसलमान देशों में सूफियों को प्रगट होने का उपाय नहीं था। इस देश में कोई अड़चन नहीं रही। इस देश में सूफी प्रगट होकर बोले हैं। जहां सूफी भी प्रगट होकर नबोल सकें, वहां धर्म का क्या उदभाव होगा! जहां उनको भी छिपाकर रखना पड़े। जहां सत्य की आखिरी ऊंचाई चोरों की भांति छिपाकर रखनी पड़े, वैसा देश धार्मिक नहीं हो सकता। इस देश की दूसरी परंपरा है। इस देश में बड़ा मुक्त वातावरण रहा है। इस देश में जो तुम्हारे भीतर हो, उसकी उदघोषणा की आज्ञा है। जो तुम्हारे भीतर हो, कौन है दूसरा जो तुम्हें रोके! जो तुम्हारे भीतर हो उसकी उदघोषणा होने दो। अगर परमात्मा ने यही चुना है तुम्हारे भीतर कि घोषणा करे-अनलहक, अहं ब्रह्मास्मि, तो करने दो घोषणा। __ यह कोई उपाधि नहीं है। कोई किसी दूसरे को देता-लेता नहीं, न कोई स्वीकार करता है, अस्वीकार करता है। यह तो तुम्हारे अंतर्तम का दीया जब जलता है, तब तुम जानते हो कि ऐसा है। यह तो तथ्य का अनुभव है। यह तो सत्य की प्रतीति है, यह तो साक्षात्कार है। लेकिन तुम्हारी अड़चन मैं जानता हूं, मुसलमान परंपरा में पले हो, उसी ढंग से सोचा है। इसीलिए तुमने यह तो कहा कि फिरआन का सबसे बड़ा अपराध यही था कि उसने अपने को खुदा होने का दावा किया, लेकिन तुम भी चालाकी कर गए, प्रश्न पूछने में भी! फिरआन को घसीटकर लाए-पुराना, नाम भी लोग भूल गए फिरआन का, पांच हजार साल पुराना, इजिप्त का बादशाह, उसको घसीटकर लाए-ज्यादा जिंदा नाम, ज्यादा जिंदा आदमी अलहिल्लाज मंसूर के संबंध में क्या खयाल है, फारूख खां! मंसूर को क्यों छोड़ दिया? तुम भी डरे होओगे कि इस सूफी को बीच में लाना ठीक नहीं है। __ लेकिन तुम्हें बड़ी अड़चन होगी। अगर तुम बुद्ध को मिल जाओगे तो तुम बुद्ध को संत न मान सकोगे। अगर महावीर को मिल जाओगे तो तुम संत न मान सकोगे। राम को मिल जाओगे, कृष्ण को मिल जाओगे तो तुम संत न मान सकोगे, क्योंकि ये तो अपराधी हैं। इनकी वाणी से तुम्हें संतोष कैसे मिलेगा? - इसलिए मैं तुमसे कहता हूं, संतों की वाणी में जरूर अमृत है, सुधा है, लेकिन तुम जाने दोगे अपने प्राणों तक तभी न! और तुम तभी जाने दे सकते हो जब तुम्हारे द्वार-दरवाजे खुले हों, तुम्हारे मन पर कोई धारणाओं का जाल न हो, तुम्हारे मन पर कोई पूर्व-पक्षपात न हों, पूर्वाग्रह न हों, तब जरूर संतों की वाणी में बड़ा सार है। उनका एक शब्द भी चेता सकता है। उनका एक इशारा जगा सकता है। मगर, अगर तुम असहयोग करो, तो संत भी सिर ठोंक-ठोंककर मर जाएं तो 100
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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