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________________ एस धम्मो सनंतनो बड़ा अपराध यही तो था कि उसने अपने को खुदा होने का दावा कर रखा था। अव इन मित्र ने इजिप्त के फिरआन का उल्लेख किया, लेकिन अलहिल्लाज मंसूर को छोड़ दिया। सच है यह बात कि इजिप्त के सम्राट फिरआन ने घोषणा कर रखी थी कि मैं खुदा हूं। यह उसका अपराध था। लेकिन अपराध इसलिए नहीं था कि उसने घोषणा की थी कि मैं खुदा हूं, अपराध का कारण दूसरा था। अपराध का कारण यह था कि वह कहता था, मेरे सिवाय खुदा और कोई नहीं। मैं खुदा हूं, मेरे सिवाय और कोई खुदा नहीं। ___ यही बात तो मंसूर ने भी कही थी, जिनको मुसलमानों ने सूली दी। और मैं समझता हूं कि फारूख खां भी राजी होंगे कि सूली ठीक दी। मंसूर ने भी यही कहा था कि मैं खुदा हूं। लेकिन बड़ा फर्क था उसके कहने में। उसके कहने का मतलब था कि मैं खुदा हूं, क्योंकि सभी खुदा हैं, खुदा के अतिरिक्त और कुछ है ही नहीं। मंसूर ने जो कहा वह संत की वाणी थी और फिरआन ने जो कहा वह संत की वाणी नहीं थी, यद्यपि वक्तव्य दोनों के एक जैसे हैं। दोनों ने यही कहा था, मैं खुदा हूं। लेकिन फिरआन कहता था, मेरे अलावा कोई और खुदा नहीं। और मंसूर ने कहा कि मैं करूं भी क्या, खुदा होना ही पड़ेगा, उसके सिवा होने का कोई उपाय नहीं, क्योंकि खुदा ही है। लेकिन मुसलमानों ने फिरआन को भी अपराधी साबित किया और मंसूर को भी सूली लगा दी। अब अगर मुसलमानों को उपनिषद के ऋषि मिल जाते जिन्होंने कहा, अहं ब्रह्मास्मि, क्या करते तुम उनके साथ? फांसी लगाते न! सूली लगाते। संत तो तुम्हें वे मालूम नहीं पड़ सकते थे। जो कहता है मैं ब्रह्म हूं, वह कैसे संत हो सकता है! ___मुसलमान नाराज हैं जीसस पर, क्योंकि जीसस ने दावा किया कि मैं ईश्वर का बेटा हं। यह भी कोई दावा है! हमारे मुल्क में लोग हैं, जो कहते हैं, हम ईश्वर हैं। बेटे का भी क्या दावा करना! मगर मुसलमान इससे नाराज हैं कि ईसा ने दावा किया कि मैं ईश्वर का बेटा हूं। नहीं, यह बात ठीक नहीं। तो तुम बुद्ध को क्या कहोगे? महावीर को क्या कहोगे? कृष्ण को और राम को क्या कहोगे? ये सब तो अपराधी हो गए। ये तो संत न रहे। तो मैं कहना चाहूंगा कि तुम्हारा ही दूसरा प्रश्न सबूत देता है कि संत का तुम्हारे मन में क्या अर्थ है। एक धारणा होगी। संत ऐसा होना चाहिए। धारणा तुम्हारी है, उस धारणा में बैठ जाएगा तो संत, नहीं बैठा तो असंत हो जाएगा। और कौन संत तुम्हारी छोटी-मोटी धारणाओं में बैठ सकता है? जो बैठ जाए वह संत ही क्या खाक! जो तुम्हारी खिड़की में बैठ जाए, तुम्हारे ढांचे के अनुकूल पड़ जाए, वह कोई संत! नकल होगा। संत की नकल ढांचों में बैठ जाती है। तुम बड़ा संतोष भी ले 96
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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