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________________ जगत का अपरतम संबंध : गुरु-शिष्य के बीच मुल्ला उसकी सभा में गया। तो वह समझा रहा था कि मांसाहार बुरा है। पशु-पक्षियों में भी आत्मा है। मुल्ला बीच में खड़ा हो गया, उसने कहा, आप बिलकुल ठीक कहते हैं, एक बार एक मछली ने ही मेरे प्राण बचाए थे। साधु तो बहुत प्रसन्न हुआ, उसने कहा, आओ भाई, आओ! यह तो बड़ा प्रमाण मिला कि एक मुसलमान भी तैयार है गवाही देने को। उन्होंने उसे पास बिठाया, उसके भोजन का भी इंतजाम करवाया और कहा कि तुम यहीं रहो, कहीं और जाने की जरूरत नहीं; यह प्रमाण हो गया। और रोज साधु जब समझाता लोगों को, वह कहता कि पूछो, इस मुसलमान भाई से पूछो, एक मछली ने ही इसके प्राण बचाए; मछलियों में भी आत्मा है। उनको खाओ मत। ___ दो-चार दिन के ही बाद एक दिन सांझ को दोनों साथ बैठे थे, वह फकीर साधु कहने लगा मुल्ला नसरुद्दीन को कि तुम तो करीब-करीब मेरे गुरु हो। यद्यपि मैंने जीवनभर शाकाहार की सेवा की, मांसाहार का विरोध किया, लेकिन अभी तक किसी पशु-पक्षी ने ऐसा प्रमाण मुझे नहीं दिया जैसा तुम्हें दिया। तुम तो करीब-करीब मेरे गुरु हो। अब विस्तार में मुझे कहो कि बात क्या थी, कैसे बचाए तुम्हारे प्राण? मुल्ला ने कहा, आप विस्तार न पूछे तो अच्छा। सब ठीक चल रहा है, विस्तार की क्या जरूरत है? पर साधु जिद्द करने लगा कि नहीं, बताना ही पड़ेगा। साधु ने तो पैर पकड़ लिए कि गुरुदेव, बताना ही पड़ेगा। तो मुल्ला ने कहा, अब नहीं मानते तो ठीक है, लेकिन हमें जाना पड़ेगा। साधु ने कहा, बात क्या है? इतना रहस्य क्यों बना रहे हो? मुल्ला ने कहा, बात यह है कि मैं बहुत भूखा था, और मछली को खाने से ही मेरे प्राण बचे। उसी रात-सुबह भी नहीं-उसी रात मुल्ला निकाला गया। ___ अभी तक इसकी वाणी में बड़ा संतोष मिल रहा था, अब इसकी वाणी में कोई संतोष न रहा। तो तुम पूछते हो कि 'संतों की वाणी सुनने या पढ़ने से मन या मस्तिष्क का तनाव दूर होता है।' . - सभी संतों की? तब तो तुम संत हो जाओगे। तब तो तुम्हारे संत होने में फिर कोई बाधा न रही। या किन्हीं-किन्हीं संतों की? पूछने वाले मित्र मुसलमान हैं। तो तुमने और किन्हीं संतों की वाणी भी पढ़ी है, जिनके विचार इस्लाम से अन्य हों? उनसे संतोष न मिलेगा। और इन्हीं मित्र ने दूसरा प्रश्न पूछा है, उससे जो मैं कह रहा हूं वह साफ हो जाएगा। इन्होंने पूछा है किसी व्यक्ति को भगवान की उपाधि देना या किसी को इस उपाधि का स्वीकार करना क्या उचित है? फिरआन का सबसे 95
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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