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________________ एस धम्मो सनंतनो करोगे? तुम तो फिर असहाय मछली की तरह हो। फेंक दिया मरुस्थल में तो मरुस्थल में तड़पोगे, किसी ने डाल दिया जल के सरोवर में तो ठीक। फिर तो तुम दूसरों के हाथ का खिलौना हो, कठपुतली हो। फिर तो तुम मुक्त होना भी चाहो तो कैसे हो सकोगे? अगर भाग्य में मुक्ति होगी तो होगी, न होगी तो न होगी। __भाग्य की मुक्ति भी क्या मुक्ति जैसी होगी? किसी को मुक्त होना पड़े मजबूरी में, तो मुक्ति भी परतंत्रता हो गयी। और कोई अपने चुनाव से नर्क भी चला जाए, कारागृह का वरण कर ले, तो अपना वरण किया हुआ कारागृह भी स्वतंत्रता की सूचना देता है। ____ मुक्ति कोई स्थान नहीं। कारागृह भी कोई स्थान नहीं। चुनाव की क्षमता में मुक्ति है। चुनाव की क्षमता न हो और आदमी केवल भाग्य के हाथ में खिलौना हो, तो फिर कोई मुक्ति नहीं। और अगर मुक्ति नहीं, तो धर्म का क्या अर्थ है! फिर तुमसे यह कहने का क्या अर्थ है कि ऐसा करो, कि पुण्य करो, कि जागो। जागना होगा भाग्य में तो जागोगे। न जागना होगा, सोए रहोगे। कोई और जगाएगा, कोई और सुलाएगा। तुम परवश हो। लेकिन आदमी ने इस भाग्य की धारणा को माना था, क्योंकि उससे बड़ी सुविधा मिलती है। सुविधा यह मिलती है कि सारा उत्तरदायित्व हट जाता है। सारी जिम्मेवारी तुमने किसी और के कंधों पर रख दी। तुम्हारा परमात्मा भी तुम्हारी बड़ी गहरी तरकीब है। तुम अपने परमात्मा के माध्यम से भी अपने को बचा लेते हो। तुम कहते हो, परमात्मा जो करवा रहा है, हो रहा है। करते तुम्ही हो, होता वही है जो तुम कर रहे हो, चुनते तुम्हीं हो, बीज तुम्हीं बोते हो, फसल भी तुम्हीं काटते हो, लेकिन बीच में परमात्मा को ले आते हो, हल्के हो जाते हो। अपने हाथ में कुछ न रहा। जिम्मेवारी न रही, अपराध न रहा; पाप न रहा, पुण्य न रहा। ऐसे असहाय बनकर तुम अपने को ही धोखा देते हो। मन की बड़ी से बड़ी तरकीब है, जिम्मेवारी को कहीं और टाल देना। और यह तरकीब इतनी गहरी है-आस्तिक भगवान पर टाल देता है, नास्तिक प्रकृति पर टाल देता है, कम्युनिस्ट इतिहास पर टाल देता है, फ्रायड अचेतन मन पर टाल देता है। कोई अर्थशास्त्र पर टाल देता है, कोई राजनीति पर टाल देता है, ये सब तुम्हारे एक ही तरकीब के जाल हैं। कोई कर्म के सिद्धांत पर टाल देता है। लेकिन टालने के संबंध में सभी राजी हैं। जिम्मेवारी हमारी नहीं है। ___लेकिन तुम थोड़ा सोचो, जैसे ही तुमने जिम्मेवारी छोड़ी, तुमने आत्मा भी खो दी। तुम्हारे उत्तरदायित्व में ही तुम्हारी आत्मा की संभावना है। अगर तुम चुनाव कर सकते हो और मालिक हो, तो ही तुम्हारे जीवन में कोई गरिमा का आविर्भाव होगा, कोई प्रकाश जलेगा, कोई दीप जगेगा; अन्यथा तुम अंधकार ही रहोगे। भाग्य से सावधान! भाग्य धार्मिक आदमी के मन की धारणा नहीं है।
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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