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सुख या दुख तुम्हारा ही निर्णय
तम चौंकोगे, क्योंकि तुम धार्मिक आदमी को भाग्यवादी पाते हो। मैं तुम्हें फिर याद दिलाऊं, धार्मिक-अधार्मिक सभी भाग्यवादी हैं। भाग्य की उनकी व्याख्या अलग-अलग होगी। मार्क्स कहता है कि समाज निर्धारक है, व्यक्ति नहीं; धन की व्यवस्था निर्धारक है, व्यक्ति नहीं। व्यक्ति की आत्मा खो गयी। और मार्क्स नास्तिक है, आस्तिक नहीं; धार्मिक नहीं, अधार्मिक है।
अधार्मिक मन का मेरे लिए एक ही लक्षण है, वह अपनी आत्मा को स्वीकार नहीं करता। वह अपने से बचना चाहता है, अपने से छिपना चाहता है, जिम्मेवारी उठाने का साहस नहीं करता, कमजोर है, निर्वीर्य है।
भाग्य पर मत टालो। भाग्य तुम्हीं लिखते हो। भाग्य तुम्हारा ही हस्ताक्षर है। माना कि कल का लिखा तुम भूल गए, तुम्हारा होश कमजोर है। परसों का लिखा स्मरण में नहीं रहा। आज अपने ही अक्षर नहीं पहचान पाते हो। लेकिन मैं तुमसे कहता हूं, गौर से खोजो, तुम अपने हस्ताक्षर पहचान लोगे। थोड़ी-बहुत बदल भी हो गयी होगी, तो भी बहुत बदल नहीं हुई है। और जिस दिन तुम्हें यह समझ में आ जाएगा कि यह दुख भी मैं ही बना रहा हूं, उस दिन तुम मालिक हुए, उस दिन तुम्हारे जीवन का वास्तविक प्रारंभ हुआ।
अब तुम्हारा चुनाव है। अगर दुखी होना चाहो, तो तुम चुनो। फिर मैं तुमसे कहता हूं, ठीक से ही चुनो। क्या थोड़ा-थोड़ा दुख! क्या बूंद-बूंद दुख! फिर सागर चुनो दुख के। फिर हिमालय रखो छाती पर दुख के। फिर डूबो नर्क में। लेकिन एक बार यह बात तय हो जाए कि तुम्ही...तो फिर तुम दुख की ही फसल काटो। अगर वही तुमने निर्णय किया, अगर उसमें ही तुमने सुख पाया है, तो सही। लेकिन एक बात समझ लेना, भूलकर भी यह मत कहना कि किसी और ने नियति तय की है।
लेकिन जानकर तो कोई भी दुख चुनेगा नहीं। यही तो मजा है, जब तक तुम दूसरे पर टालते हो, तभी तक दुख को चुनोगे। जिस दिन तुम सोचोगे मेरा ही चुनाव है, कौन दुख को चुनता है ? दुख को जानकर कब किसने चुना है? अनजाने भला चुन लो, हीरे-जवाहरात समझकर भला तुम सांप-बिच्छू तिजोड़ी में इकट्ठा कर लो, लेकिन सांप-बिच्छू समझकर कौन इकट्ठा करता है?
एक बार तुम्हें समझ में आ गया कि मैं ही निर्णायक हूं, मैं ही हूं मेरा भाग्य, मेरी नियति मेरा चुनाव है, उसी क्षण से दुख विदा होने लगेगा, उसी क्षण से तुम्हारे जीवन में सुख का प्रभात होगा, सुख का सूरज निकलेगा। और जब अपने ही हाथ में है, तो फिर थोड़ा-थोड़ा सुख क्या चुनना! फिर बरसाओ सुख के मेघ।
और मैं तुमसे कहता हूं, यह तुम्हारे निर्णय पर निर्भर है। और यह बहुत बुनियादी निर्णय है।
पूछा है, 'क्या मेरी नियति में सिर्फ विषाद की एक लंबी श्रृंखला लिखी है?' कौन लिखेगा विषाद की लंबी श्रृंखला तुम्हारे जीवन में? किसको पड़ी है? कौन