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ऊर्जा का क्षण-क्षण उपयोग : धर्म
अपने अंतःस्तल में क्या सोचते, क्या जानते हो स्वयं को। भीड़ की फिकर छोड़ो। मरते वक्त तुम अकेले जाओगे। महावीर चक्र साथ न ले जा सकोगे। मौत को तुम महावीर चक्र दिखाकर यह न कह सकोगे, एक क्षण रुक, मैं कोई साधारण आदमी नहीं हूं, भारतरत्न हूं। मौत तुम्हें ऐसे ही ले जाएगी जैसे किसी और को ले जाती है। जन्म से अकेले, मौत में अकेले, बीच में दोनों के भीड़ है। उस भीड़ की बातों में बहुत मत पड़ जाना। ___ अहंकार का अर्थ है, लोग क्या कहते तुम्हारे संबंध में, इसकी चिंता। मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, अगर हम क्रोध न करें, तो लोग समझते हैं हम कमजोर हैं। तो क्रोध तो करना ही पड़ेगा। फिर पूछते हैं, मन की शांति कैसे हो? तो फिर मैं उनसे कहता हूं, फिर शांति की भी फिकर छोड़ो। क्योंकि शांत को भी लोग समझते हैं, कमजोर हो। तुम अशांत ही रहो। तुम तो जितने पगला जाओ उतना अच्छा। क्योंकि पागल को लोग समझते हैं कि बड़ा बलशाली है। पागल से लोग डरते हैं।
लोगों को डराने के लिए तुम करीब-करीब पागल हो गए हो। पत्नी पागल हो जाती है, पति डर जाता है। पति पागल हो जाता है, पत्नी डर जाती है। सब एक-दूसरे को डरा रहे हैं। समय खोया जाता है। जब कि तुम अपने को जान सकते थे, उसको दूसरों को डराने में समय खो रहे हो। छोटे-छोटे बच्चों को डराते हैं मां-बाप, इस बुरी तरह डराते हैं। उसमें भी बड़ा मजा ले लेते हैं। यद्यपि सोचते यही हैं कि उनके हित में डरा रहे हैं। लेकिन वे जिंदगीभर इनके डर के कारण पीड़ित रहेंगे।
मनस्विद कहते हैं कि अगर मां-बाप ने बच्चों को बहुत ज्यादा डरा दिया तो वे जिंदगीभर डरते रहेंगे, वे हर किसी से डरेंगे। जहां भी कोई शक्तिशाली होगा, वहीं डर जाएंगे। वे सदा पैर छूते रहेंगे। वे सदा भयभीत कंपते रहेंगे। उनको कभी भी जीवन में स्वयं होने की क्षमता न आ सकेगी। लेकिन मां-बाप डराते हैं यह कहकर कि उनके हित के लिए डरा रहे हैं। ____ मैं तुमसे यह कहना चाह रहा हूं कि तुम अपनी बीमारियों को अच्छे नाम मत देना। तुम अपनी बीमारियों को उनका वही नाम देना, जो ठीक है। अहंकार को अहंकार कहना, स्वाभिमान मत। क्रोध को क्रोध कहना, दूसरे का हित नहीं। बच्चे को मारो तो जानकर मारना कि मारने में तुम्हें रस आ रहा है, मजा आ रहा है। छोटे बच्चे को सताने में तुम्हें शक्तिशाली होने का सुख मिल रहा है। यह मत कहना कि तेरे हित में मार रहे हैं। नहीं तो तुम चूक जाओगे; फिर पाप चलेगा। ___'मनुष्य यदि पाप कर बैठे तो उसे पुनः-पुनः न करे, उसमें रत न हो; क्योंकि पाप का संचय दुखदायी है।' । __ लेकिन यह तो बुद्धपुरुष सदियों से कहते रहे कि पाप का संचय दुखदायी है, फिर भी लोग पाप करते हैं। तो कारण खोजना होगा। लोग दुख को भी छोड़ना नहीं चाहते। दुख में भी कुछ न्यस्त स्वार्थ हैं।