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एस धम्मो सनंतनो
साफ है। लेकिन दुख के लिए ही तो कोई क्रोध को न करेगा, कुछ और भी देता होगा। कुछ रस भी देता होगा। तुमने कभी क्रोध में देखा कि क्रोध के क्षण में तुम शक्तिशाली मालूम होते हो। यह तुमने अनुभव किया होगा कि क्रोध में एक आदमी बड़ी चट्टान को हटा देता है, बिना क्रोध के नहीं हटा पाता। चार आदमी लगते हैं हटाने में। क्रोध की हालत में तुम अपने से मजबूत आदमी को उठाकर फेंक देते हो। प्रेम की हालत में तुम्हारा बच्चा भी तुम्हें चारों-खाने-चित्त कर देता है। क्रोध शक्ति देता मालूम पड़ता है। क्रोध अहंकार को बल देता मालूम पड़ता है। जब तुम क्रोध में होते हो तो ऐसा लगता है कि तुम शक्तिशाली हो, दूसरों के मालिक हो, दूसरों को अपने हिसाब से चलाने का तुम्हें हक है। जब तुम क्रोध नहीं करते हो तो ऐसा लगता है कि तुम निर्वीर्य हो, निर्बल हो, तुम किसी को चला नहीं पाते। ___तो क्रोध दुख देता है, वह तो ठीक है; लेकिन क्रोध अहंकार भी देता है। उसे . समझना जरूरी है। दुख के लिए तो कोई क्रोध को करता नहीं। लेकिन अहंकार के लिए करता है। अगर तुम अहंकार को पोसते हो, तो तुम क्रोध से न बच सकोगे। अगर तुम अहंकार को पोसते हो, तो तुम लोभ से न बच सकोगे। तुम फ़िर अहंकार के लिए नए-नए शब्द गढ़ लोगे। ___ मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, अहंकार और स्वाभिमान में क्या फर्क है? मैं उनसे कहता हूं, तुम्हें हो तो स्वाभिमान, दूसरों को हो तो अहंकार। और तो कोई फर्क नहीं है। अपनी बीमारी को भी आदमी अच्छे-अच्छे शब्द देना चाहता है। .
कल ही एक मित्र ने प्रश्न पूछा था कि दूसरे लोगों को महावीर चक्र मिलता है, तो हमको भी पाने की कोशिश करनी चाहिए कि नहीं। दिल्ली में सम्मान मिलते हैं-महावीर चक्र है, पद्मभूषण है, भारतरत्न है-ऐसी उपलब्धियां होती हैं लोगों को, तो ये पाने योग्य हैं या नहीं? __ क्या करोगे महावीर चक्र लेकर? ऐसे ही कोई चक्रम तुम कम हो! और सरकारी सील लग जाएगी कि निश्चित! लेकिन अहंकार व्यर्थ की बातों में भी बड़ा रस लेता है। अब जिसने पूछा है, वह गलत जगह आ गया। यहां सारी कोशिश यह है कि तुम कैसे चक्रम न हो जाओ, चक्कर से कैसे बाहर निकलो, तुम्हें महावीर चक्र की सूझी है! क्या करोगे पाकर? क्या मिलेगा? कुछ पाना ही हो तो भीतर कुछ पाने की बात करो। और लोग कहें कि तुम बड़े विद्वान हो, और लोग कहें कि बड़े बलशाली हो; और लोग क्या कहते हैं, इससे क्या फर्क पड़ेगा? तुम क्या हो, इसकी चिंता करो।
गौण अतिशय गौण है, तेरे विषय में दूसरे क्या बोलते, क्या सोचते हैं। मुख्य है यह बात पर अपने विषय में
तू स्वयं क्या सोचता, क्या जानता है एक ही बात महत्वपूर्ण है, तुम अपने स्वयं में, अपनी समझ में, अपने भीतर,