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________________ ऊर्जा का क्षण-क्षण उपयोग : धर्म पाप का संचय दुखदायी है । ' पाप के दो रूप हैं। एक तो पाप का क्षणिक रूप है । वह क्षमा योग्य है । फिर पाप का एक स्थाई भाव है । वह क्षमा योग्य नहीं है। छोटा बच्चा है, तुमने चांटा मार दिया, वह गुस्से में आ गया, पैर पटकने लगा, यह क्रोध क्षमा योग्य है। क्योंकि क्षणभर बाद यह बच्चा उसे भूल जाएगा। क्षणभर बाद तुम इसे हंसता हुआ पाओगे । क्षणभर पहले वह कह रहा था कि तुमसे अब कभी बोलेंगे भी नहीं, तुम्हारी शकल भी न देखेंगे, क्षणभर बाद तुम इसे अपनी गोदी में बैठा पाओगे। यह क्षण का उफान था। यह कोई स्थाई भाव नहीं । लेकिन हम पाप का स्थाई भाव निर्मित करते हैं। आज क्रोध किया, कल भी क्रोध किया था, परसों भी क्रोध किया था, अब क्रोध की एक लकीर बन रही है। और धीरे-धीरे और भी छोटे-छोटे कारणों पर हम क्रोध करने में कुशल होते जाएंगे। क्योंकि क्रोध करना हमारा स्वभाव - करीब-करीब स्वभाव बन जाएगा, आदत बन जाएगी। पहले हम बड़ी बातों पर क्रोध करेंगे, फिर छोटी बातों पर क्रोध करेंगे, फिर ना-कुछ पर क्रोध करने लगेंगे, फिर ऐसी घड़ी आ जाएगी कि क्रोध के लिए हमें कारण खोजने पड़ेंगे। क्योंकि न करेंगे तो बेचैनी मालूम होगी, तलफ लगेगी। जिस दिन क्रोध न किया उस दिन लगेगा कि जिंदगी ऐसे ही गयी । उत्साह ही मर जाएगा। क्रोध एक तरह का धूम्रपान हो जाएगा। उससे उत्तेजना मिलेगी, नशा चढ़ेगा, लगेगा जीवित हैं। रस मालूम होगा । I 'मनुष्य यदि पाप कर बैठे तो पुनः पुनः न करे।' हो जाए पाप, तो कोई बहुत चिंता की बात नहीं । मनुष्य है, भूल स्वाभाविक है । लेकिन उसकी पुनरुक्ति न करे । पाप क्षमा योग्य है, पुनरुक्ति क्षमा योग्य नहीं है । भूल क्षमा योग्य है, लेकिन उसी - उसी भूल को बार-बार करना क्षमा योग्य नहीं है। तुमसे एक बार भूल हो गयी, समझो, अब उसे दोहराओ मत। अगर भूल को तुम दोहराते हो, तो फिर तो भूल धीरे-धीरे भूल मालूम ही न पड़ेगी। तुम्हारे जीवन की सामान्य प्रक्रिया हो जाएगी। तुम दोनों तरह के लोगों को जानते हो। ऐसे लोग हैं जो कभी-कभी क्रोध करते हैं। उनको तुम भले आदमी पाओगे, बुरे आदमी नहीं। उनका क्रोध भी कुछ बहुत भयंकर नहीं होगा। कभी-कभी करते हैं। सामान्यजन हैं, सिद्धपुरुष नहीं हैं, माना । लेकिन कुछ लोग तुम पाओगे जो कभी-कभी क्रोध नहीं करते, जो क्रोध में रहते ही हैं। क्रोध जिनका स्वभाव है । उठते हैं, बैठते हैं क्रोध में; चलते हैं क्रोध में; बोलते हैं क्रोध में; प्रेम भी करते हैं तो क्रोध में; नमस्कार भी करते हैं तो क्रोध में; क्रोध उनकी स्थाई दशा है। क्रोध की सतत-धारा उनके नीचे बहती रहती है। यह क्षमा योग्य नहीं हैं । इन्होंने गहन अपराध कर लिया। लेकिन ऐसा क्यों होता है ? जरूर क्रोध कुछ देता होगा । दुख देता है, यह तो 65
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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