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एस धम्मो सनंतनो
बहुत सुगम हो जाएगा। इधर पाप से मन को बचाते रहो, उधर पाप की जितनी ऊर्जा बच गयी पाप से, पुण्य में लगाते रहो। शीघ्रता करो लेकिन। मन की एक तरकीब है-स्थगन। मन कहता है, कल कर लेंगे।
यह सोचते ही रहे और बहार खत्म हुई
कहां चमन में नशेमन बने कहां न बने यह बहार सदा रहने वाली नहीं। यह वसंत सदा रहने वाला नहीं। इसका प्रारंभ है, इसका अंत है। यह जन्म है और मौत आती है। ये बीच की थोड़ी सी घड़ियां हैं। तुम कहीं यही सोचते-सोचते बिता मत देना कि कहां बनाएं घर-कहां नशेमन बने, कहां न बने। यह बहार रुकी न रहेगी तुम्हारे सोचने के लिए। यह जीवन तुमने कुछ भी न किया तो भी खो जाएगा, इसलिए कुछ कर लो। क्योंकि जो तुम कर लोगे, वही बचना होगा। जो तुम कृत्य में रूपांतरित कर लोगे, जो सक्रिय हो जाएगा, सृजनात्मक हो जाएगा, वही तुम्हारी संपदा बन जाएगी। बचाने से नहीं बचता जीवन, जगाने से, सृजन कर लेने से बचता है।
वे ही हैं धन्यभागी, जो एक-एक पल का उपयोग कर लेते हैं। इसके पहले कि पल जाए, पल को निचोड़ लेते हैं। उनका जीवन सघन होता जाता है। उनका जीवन गहन आंतरिक शांति, आनंद और संपदा से भरता जाता है। मौत उन्हें दरिद्र नहीं पाती। मौत उन्हें भिखारियों की तरह नहीं पाती। मौत उन्हें सम्राटों की तरह पाती है। लेकिन जिन्हें तुम सम्राटों की तरह जानते हो, मौत उन्हें भिखमंगों की तरह पाती है।
क्षण का उपयोग, इसके पहले कि खो जाए। और क्षण बड़ी जल्दी खो रहा है, भागा जा रहा है। एक पल की भी देर की कि गया। तुम जरा ही झपकी खाए कि गया। इतनी त्वरा से पकड़ना है समय को। विचार करने की भी सुविधा नहीं है। क्योंकि विचार में भी समय खो जाएगा और वर्तमान का क्षण विचार के लिए भी अवकाश नहीं देता। निर्विचार से, ध्यान से, पुण्य में उतर जाओ। इसलिए पुण्य की प्रक्रिया का ध्यान अनिवार्य अंग है। क्योंकि केवल ध्यानी ही शीघ्रता कर सकता है। जो विचार करता है, वह तो देर कर ही देगा। वह तो सोचता ही रहेगा
यह सोचते ही रहे और बहार खत्म हुई
कहां चमन में नशेमन बने कहां न बने विचारक तो सोचता ही रहेगा। इसलिए धर्म विचारक का रास्ता नहीं है। धर्म है ध्यानी का रास्ता। ध्यानी का अर्थ है, सोच-विचार छोड़ा। जो अस्तित्व है हाथ में, उसका कुछ सृजनात्मक उपयोग करेंगे। जो हाथ में है, वहीं घर को बनाएंगे। जो हाथ में है, उसे ही रूपांतरित करेंगे। फिर कल जो होगा कल देख लेंगे। आज को कल के लिए न खोएंगे। आज को निर्माण करेंगे, ताकि कल उसके ऊपर, उसके आधार पर और ऊंचाइयों के शिखर छू सके। ___'मनुष्य यदि पाप कर बैठे तो उसे पुनः पुनः न करे, उसमें रत न हो; क्योंकि
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