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ऊर्जा का क्षण-क्षण उपयोग : धर्म
__पाप और पुण्य विकल्प हैं। अगर तुम्हारा ध्यान करुणा पर लगा है, तो तुम क्रोध कैसे कर सकोगे? क्रोध भूल ही जाएगा। याद ही न आएगी। जैसे क्रोध कोई घटना होती ही नहीं। जैसे क्रोध कोई दिशा ही नहीं है। अगर तुम्हारा ध्यान दान पर लगा है, देने पर लगा है, तो कृपणता भूल ही जाएगी। ये दोनों बातें एक साथ याद नहीं रखी जा सकतीं। यह तो असंभव है। तुम एक में ही जी सकते हो। ___ इसलिए बुद्ध के सूत्र का अर्थ यह है कि अगर तुम त्वरा करो, जल्दी करो, शीघ्रता करो और पुण्य में अपने मन को लगाते रहो, तो तुम पाओगे कि पाप से तुम बचने ही लगे, बचने की जरूरत न रही। और जब भी कभी तुम्हें लगे कि पाप पर नजर जा रही है, तत्क्षण पण्य पर नजर देना।
ऐसा समझो कि तुम्हें कोई एक आदमी दिखायी पड़ा, बांसुरी बजा रहा है, लेकिन शकल कुरूप है। अब तुम्हारे सामने दो विकल्प हैं। या तो तुम उसकी कुरूप शकल देखो और पीड़ित और बेचैन हो जाओ, या उसकी सुंदर बांसुरी का स्वर सुनो, सौंदर्य में लीन हो जाओ। - अगर तुम सुंदर बांसुरी का स्वर सुनो, तो उसकी कुरूप शकल भूल जाएगी। स्वरों में तुम लवलीन हो जाओगे, तल्लीन हो जाओगे। अगर तुम उसका कुरूप चेहरा देखो, तो बांसुरी बजती रहेगी, तुम्हें सुनायी न पड़ेगी, तुम कुरूपता के कांटे से उलझ जाओगे। गुलाब की झाड़ी के पास खड़े होकर कांटे गिनो या फूल गिनो, दोनों संभावनाएं हैं। जो फूल गिनता है, वह कांटे भूल जाता है। जो कांटे गिनता है, उसे फूल दिखायी पड़ने बंद हो जाते हैं। पुण्य और पाप जीवन के विकल्प हैं। ___'पाप से चित्त को हटाए, पुण्य करने में शीघ्रता करे। पुण्य को धीमी गति से करने वाले का मन पाप में रमने लगता है।'
करोगे क्या? नदी बहेगी नहीं तो डबरा बनने ही लगेगी। बहती रहे, बहाव रहे, तो डबरा कैसे बनेगी? एक ही हो सकता है। नदी डबरा बने तो बह न सके, बहे तो डबरा न बन सके। - बुद्ध का जोर पाप से बचने पर उतना नहीं है, जितना पुण्य में रत होने पर है। यही नीति और धर्म का भेद है। नीति कहती है पाप से बचो, धर्म कहता है पुण्य में डूबो। ऊपर से देखने पर दोनों एक सी बातें हैं, पर एक सी नहीं। जमीन और आसमान का भेद है। अगर तुम सिर्फ पाप से ही बचोगे, तो ज्यादा देर बच न पाओगे, क्योंकि बच-बचकर ऊर्जा का क्या करोगे? अगर क्रोध को ही रोके रहे, कितनी देर रोक पाओगे? विस्फोट होगा। इकट्ठा हो जाएगा, फिर बहेगा, फिर तुम अवश हो जाओगे। नहीं, सिर्फ क्रोध को बचाकर कोई क्रोध से नहीं बच सकता। करुणा में बहना पड़ेगा, अन्यथा क्रोध के डबरे भर जाएंगे। . धर्म विधायक रूप से पुण्य की खोज है, नीति निषेधात्मक रूप से पाप से बचाव है। हां, अगर तुम दोनों का उपयोग कर सको, तो तुम्हें दोनों पंख मिल गए। उड़ना