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________________ एस धम्मो सनंतनो शोरगुल है, तुम्हारे लिए खो गया। तुम्हारा ध्यान कहीं और चला गया। तुम बाजार में खड़े थे, सब तरफ उपद्रव था, किसी ने कहा, घर में आग लग गयी, तुम भागे। अब तुम्हें बाजार का कुछ भी दिखायी नहीं पड़ता। सपना हो गया। तुम्हें घर की लपटें ही दिखायी पड़ती हैं। तुम्हारा ध्यान कहीं और लग गया। तुमने कभी देखा, युवक खेलते हों हाकी, फुटबाल, वालीबाल, पैर में चोट लग गयी, खून बह रहा है, सभी दर्शकों को दिखायी पड़ता है, खिलाड़ी को दिखायी नहीं पड़ता। ध्यान उसका अभी लगा है-खेल में लगा है। अभी समय कहां? सुविधा कहां? अभी ध्यान को बहने का पैर की तरफ उपाय नहीं। खेल बंद हुआ। तत्क्षण ध्यान बहेगा, खून का पता चलेगा। ऐसी कहानियां हैं-कहानियां जरा विश्वासयोग्य नहीं, लेकिन सूचक हैं—ऐसी कहानी है कि राणा सांगा युद्ध में लड़ते रहे, सिर कट गया और लड़ते रहे। यह कहानी चाहे सच न हो, लेकिन ध्यान की दृष्टि से सार्थक है। अगर पैर में लगा, खून बहता रहता है और खिलाड़ी को पता नहीं चलता, तो यह भी संभव है कि योद्धा इतना तल्लीन हो युद्ध में कि गर्दन कट जाए और उसको पता.न चले, वह लड़ता ही रहे। जब पता चले, तभी तो रुकेगा न। यह हुआ हो या न हुआ हो, यह सवाल नहीं है। लेकिन ध्यान की तरफ इसमें एक इशारा है। वह इशारा यह है कि तुम मरोगे भी तब, जब तुम मौत पर ध्यान दोगे। अगर तुम्हारा सारा ध्यान जिंदगी की तरफ बहता रहा तो तुम्हें मौत भी खड़ी रहेगी दरवाजे पर, बुला न सकेगी। तो किसी ने याद दिलाया होगा कि राणा सांगा यह क्या कर रहे हो, सिर तो कट ही गया। अब रुको भी। इसका खयाल आते ही रुक गए होंगे, तो बात अलग। इस कहानी में सत्य का अंश मालूम पड़ता है। (काशी के नरेश का अपेंडिक्स का आपरेशन हुआ। तो उन्होंने कहा, मैं तो गीता पढ़ता रहूंगा, कोई नशे की दवा, कोई बेहोशी की दवा, कोई अनस्थीसिया नहीं लूंगा। ऐसा खतरनाक मामला था कि आपरेशन न हो तो भी मौत होनी थी, और नरेश किसी भी तरह बेहोशी की दवा लेने को तैयार न था। तो चिकित्सकों ने खतरा लेना ठीक समझा कि अब कोई मरेगा ही-आपरेशन न हुआ तो मौत निश्चित है और आपरेशन किया बिना बेहोशी की दवा के तो भी मौत करीब-करीब निश्चित है—पर कौन जाने शायद यह आदमी ठीक ही कहता हो, एक प्रयोग कर लेने में हर्ज नहीं है। प्रयोग किया। ___वह अपनी गीता का पाठ करते रहे, आपरेशन चलता रहा। आपरेशन हो गया, तब डाक्टरों ने कहा कि अब आप पाठ बंद कर सकते हैं। पूछा उनसे कि क्या हुआ? उन्होंने कहा, कुछ और मैं जानता नहीं, इतना ही जानता हूं कि जब मैं गीता पढ़ता हूं तब मुझे और कुछ भी ध्यान में नहीं रहता। सारा ध्यान गीता पर लग जाता है। मैं और कहीं नहीं रहता, सिकुड़कर गीता पर आ जाता हूं।) 62
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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