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ऊर्जा का क्षण-क्षण उपयोग : धर्म
__और तुम चकित होओगे जानकर, जीवन के इस भीतरी गणित को पहचानकर कि जितना तुम बांटते हो, उतना ज्यादा तुम्हें मिलता जाता है। तुम थकते ही नहीं। तुम भरते ही चले जाते हो। जैसे अनंत स्रोत खुल गए। इधर तुम लुटाते हो, वहां झरने तुम्हें भरे जा रहे हैं। फिर तो लुटाने का मजा आ जाता है। क्योंकि लुटाने से मिलता है। एक दफा लुटाने का अर्थशास्त्र खयाल में आ गया, फिर तुम कभी दीन हो ही नहीं सकते, फिर तुम दरिद्र हो ही नहीं सकते। फिर तुम सम्राट हो गए। और सम्राट होने का कोई दूसरा उपाय नहीं है। शक्ति थोड़ी देर भी रुक जाए, जहर हो जाती है। शक्ति का रुकना ही, अवरुद्ध होना ही सड़ना है।
हर घट से अपनी प्यास बुझा मत ओ प्यासे
प्याला बदले तो मधु ही विष बन जाता है तुम पुराने पड़ गए तो जो ऊर्जा तुम्हारे नए क्षण में अमृत थी, वही बासी हो गयी, वही सड़ गयी। जैसे ऊर्जा मिले, उसका उपयोग कर लो। क्षण-क्षण जीओ।
बद्ध ने अपने विचार को, अपने दर्शन को क्षणवाद कहा है। कहा है, क्षण-क्षण जीओ। एक क्षण से ज्यादा का हिसाब मत रखो। जिस अनजान स्रोत से इस क्षण को जीवन मिला है। उसी अनजान, उसी शून्य से अगले क्षण भी जीवन मिलता रहेगा। कृपण मत बनो। धर्म को अगर एक शब्द में कोई पूछे तो कहा जा सकता है, वह अकृपणता है।
मरने वाले तो खैर बेबस हैं - जीने वाले कमाल करते हैं कोई आदमी मर गया, अब बांट नहीं सकता, समझ में आता है।
मरने वाले तो खैर बेबस हैं
जीने वाले कमाल करते हैं जीते हैं और बांटते नहीं हैं। तो जीने के नाम पर सिर्फ मरते हैं। मृत्यु तो तुमसे सब छीन लेगी, उसके पहले तुम बांट दो, दाता बन जाओ। मृत्यु तो तुमसे सब झटक लेगी, फिर तुम लाख चिल्लाओगे तो कुछ काम न पड़ेगा तुम्हारा चिल्लाना। इसके पहले कि मृत्यु तुम्हारे हाथ से ले, तुम बांट दो, तुम सम्राट बन जाओ। जो व्यक्ति ऐसी स्थिति में मरता है-बांटता ही बांटता मरता है-वह मरता ही नहीं। उसने अमृत का सूत्र पा लिया।
'पुण्य करने में शीघ्रता करे, पाप से चित्त को हटाए।' __ अगर तुम पुण्य की तरफ चित्त को न लगाओ, तो पाप की तरफ चित्त लगेगा। कहीं तो लगेगा। चित्त को कोई ध्यान का बिंदु चाहिए।
तुमने कभी खयाल किया, बीच बाजार में बैठे हो, अगर कोई बांसुरी बजाने लगे और तुम्हारा ध्यान बांसुरी की तरफ चला जाए, उस ध्यान के क्षण में बाजार का सब शोरगुल विलीन हो जाता है। अपनी जगह चल ही रहा है बाजार, उतना ही