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________________ एस धम्मो सनंतनो पुण्य का सतत प्रवाह चाहिए। जैसे नदी ताजी होती है, बहती रहती है। डबरा बन गयी, सड़ने लगी । कीचड़ पैदा होने लगा। दुर्गंध उठने लगी । खो गयी स्वच्छता, खो गयी ताजगी, खो गया कुंवारापन । वह सुगंध न रही, वह सुवास न रही, बंधन में पड़ गयी; वह मुक्ति का छंद न रहा, वह गीत न रहा । बहाओ । एक क्षण को भी ऊर्जा इकट्ठी मत करो। करनी ही क्या है ? जिसने आज दी है, कल भी देगा। जो प्रतिपल दे रहा है, वह प्रतिपल देता रहेगा । तुम लुटाओ दोनों हाथों से 1 पुण्य का अर्थ है, जब भी तुम पाओ तुम्हारे पास कुछ करने की शक्ति है, करो । खोजो अवसर । अवसर की कोई कमी नहीं है। सिर्फ कृपणता न हो, तो अवसर ही अवसर है । कुछ भी करो, कुछ बहुत बड़ा काम करना है, ऐसा ही नहीं है। कि तुम सारी दुनिया को बदलो, कोई बहुत बड़ा आदर्श समाज बनाओ, तभी कुछ होगा। कोई छोटा सा काम ही करो। किसी आदमी के पैर में लगा कांटा ही निकाल दो। किसी के घर का आंगन ही साफ कर आओ। रास्ते का कचरा ही अलग कर दो। कुछ भी करो । लेकिन एक बात खयाल रखो कि तुम जो करो, वह किसी के लिए सुख लाता हो । किसी के लिए सुख लाता हो, वही पुण्य है। और जो किसी के लिए सुख लाता है, वह अनंत गुना सुख तुम्हारे लिए ले आता है। पाप कहता है, तुम्हारे लिए सुख लाऊंगा ; पुण्य कहता है, दूसरों के लिए सुख लाऊंगा । पाप कहता है, तुम्हारे लिए सुख लाऊंगा; लाता नहीं, जब लाता है दुख की झोली भर आती है। पुण्य कहता है, दूसरों के लिए सुख लाऊंगा; लेकिन तुम उससे अगर राजी हो जाओ, तो तुम पर अनंत गुना बरस जाता है। जो तुम दूसरों को देते हो, वही तुम्हें मिलता है। इसे थोड़ा समझो। जब तुम अपने लिए सुख चाहते हो, तो तुम दूसरों के दुख की कीमत पर भी अपने लिए सुख चाहते हो। तुम देते दूसरे को दुख हो, अपने लिए सुख की कामना करते हो - दुख ही मिलता है। जब तुम दूसरे को सुख देने लगते हो, अपने को दुख देने की कीमत पर भी, तब तुम्हारे चारों तरफ सुख की लहरें उठने लगती हैं। 'पुण्य करने में शीघ्रता करे ।' त्वरा चाहिए। जरा सी भी शिथिलता मत करना, क्योंकि शक्ति क्षणभर को रुकती नहीं । तुमने देर की, उतने में ही शक्ति पाप बनने लगेगी। ऐसा ही है कि अगर तुमने दूध का उपयोग न कर लिया, दूध खट्टा होने लगेगा, दही बनने लगेगा। अगर तुम मुझसे पूछो, तो शक्ति को देर तक रखना ही उसमें खटास पैदा कर देता है। वह पाप की तरफ उन्मुख हो जाती है । शक्ति का प्रतिपल उपयोग चाहिए। एक क्षण की भी देरी व्यर्थ है । अवसर खोना ही मत। और जितने तुम अवसर कम से कम खोओगे, उतने ज्यादा अवसर तुम्हें उपलब्ध होने लगेंगे। 60
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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