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ऊर्जा का क्षण-क्षण उपयोग : धर्म
वे ही पाप करते हैं। जहां ऊर्जा है वहां संभावना है, कुछ होकर रहेगा।
फूल भी खिलता है ऊर्जा से, कांटा भी निकलता है ऊर्जा से। अगर फूल न निकला, तो ऊर्जा कांटे से बहेगी। इसके पहले कि ऊर्जा कांटा बनने लगे, तुम फूल बना लेना। तो शक्ति को इकट्ठी करके मत बैठो ।
शक्ति तुम रोज पैदा कर रहे हो अनेक-अनेक रूपों से । भोजन शक्ति दे रहा है, श्वास शक्ति दे रही है, जल शक्ति दे रहा है, सूरज शक्ति दे रहा है । तुम्हारा जीवन प्रतिपल ऊर्जा को उदगम कर रहा है, पैदा कर रहा है। इस ऊर्जा का तुम उपयोग क्या कर रहे हो ?
अगर इसका कोई सदुपयोग न हुआ, फूल न बने, तो भी यह ऊर्जा को निष्कासित तो होना ही पड़ेगा। यह बहेगी । अगर यह करुणा न बनी, तो क्रोध बनेगी। अगर यह प्रेम न बनी, तो काम बनेगी। अगर यह प्रार्थना न बनी, तो निंदा बनेगी। अगर यह पूजा न बनी, तो कुछ तो बनेगी। यह ऊर्जा ऐसे ही नहीं रहेगी। यह संगृहीत नहीं रहेगी, यह बिखरेगी। क्योंकि कल फिर नयी ऊर्जा आ रही है, जगह खाली करनी पड़ेगी। इसे सक्रिय करो, बुद्ध के सूत्र का इतना ही अर्थ है ।
'पुण्य करने में शीघ्रता करे ।'
हम करते उलटा हैं। अगर पुण्य करना हो तो हम कहते हैं, सोचेंगे, विचारेंगे, कल करेंगे, परसों करेंगे। पाप करना हो तो हम तत्क्षण करते हैं।
तुमने कभी इस पर खयाल किया, कोई गाली दे तो तुम नहीं कहते कि चौबीस घंटे बाद, सोच-विचारकर उत्तर देंगे। अगर तुम ऐसा करो तो शायद उत्तर तुम कभी ही न पाओ । सोच-विचारकर कब किसी ने गाली का उत्तर दिया है? सोच-विचार तो गाली को आने ही न देगा। सोच-विचार तो गाली को रुकावट बन जाएगी। गाली के लिए तो बेहोशी चाहिए। तत्क्षण करते हो तुम। किसी ने गाली दी, तुम फिर क्षण भी नहीं खोते। फिर तुम्हें जो करना है, उसी वक्त बावले होकर पागल होकर कर
हो ।
लेकिन अगर किसी ने प्रेम मांगा, तुम कितने कंजूस हो जाते हो ! तुमने कभी ध्यान किया, प्रेम में तुम कितने कंजूस हो। देते हो तो भी बड़े बेमन से देते हो, रोक-रोककर देते हो। जैसे प्राण टूटे जा रहे हैं, जैसे जीवन नष्ट हुआ जा रहा है।
मेरे पास हजारों लोग आते हैं। बड़ी से बड़ी कठिनाई जो मैं देखता हूं, वह प्रेम देने की कठिनाई है। मांगते हैं, देते नहीं। सभी के मन में एक शिकायत है कि प्रेम नहीं मिल रहा है। होगी ही। क्योंकि कोई दे ही नहीं रहा है, तो मिलेगा कैसे ? वे खुद भी नहीं दे रहे हैं।
देना हम भूल ही गए हैं। हमें ऐसा लगता है कि देने से खो जाएगा । जब कि जीवन का सार-सूत्र यही है कि जो भी पुण्य है, वह देने से बढ़ता है, बांटने से बढ़ता है। दबाने से घटता है, रोकने से मरता है ।
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