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________________ एस धम्मो सनंतनो हो गए होंगे। वहां और बड़ी हुड़दंग है, क्योंकि पूरी भीड़ धक्का देती है। बीच में तो आदमी फिर भी खिसक जाए कहीं। पीछे हो-तुम अगर रसोइए का काम कर रहे हो-तो कोई ज्यादा चिंता नहीं है, पीछे के पीछे निकल भी गए तो कोई भीड़ तुम्हारे लिए शोरगुल न मचाएगी। राष्ट्रपतियों को तो निकलने भी नहीं देती। पहले तो पहुंचने नहीं देती, फिर निकलने नहीं देती। गरीब तो निकल भी जाए भीड़ के बाहर, कौन फिक्र करता है? लोग खुश ही होते हैं कि चलो, एक झंझट मिटी। गरीब तो राह के किनारे खड़ा भी हो जाए, तो कौन उसे निमंत्रण देता है? लेकिन पहले लोग आगे पहुंचने की जद्दोजहद करते हैं, तब लोग पहुंचने नहीं देते, क्योंकि उनको भी आगे जाना है। सभी तो आगे नहीं हो सकते। पंक्ति में आगे सभी को खड़े होना है, तो बड़ा संघर्ष है। फिर किसी तरह आगे पहुंच गए, तो फिर पीछे लौटना बहुत मुश्किल हो जाता है। खुद भी नहीं लौटना चाहते, लोग भी न लौटने देंगे। करने का सवाल नहीं है। करना मात्र दुर्घटना में ले जाएगा। होना। होने पर जोर दो। इस आयाम को ठीक से समझ लो। करने का मतलब ही यह होता है, जो दूसरों को दिखायी पड़ सके। तुमने एक चित्र बनाया, दूसरे देख सकते हैं। तुमने एक मूर्ति बनायी, दूसरे देख सकते हैं। तुमने एक भवन बनाया, दूसरे देख सकते हैं। तुमने धन कमाया, पद कमाया, दूसरे देख सकते हैं। लेकिन तुमने शांति पायी, कौन देखेगा? अशांत आंखें पहचान ही न सकेंगी। तुम्हारे भीतर एक भाव का फूल खिला, कौन देखेगा? भाव का फूल देखने के लिए भक्त चाहिए। तुम्हारे भीतर ज्ञान की सुरभि उठी, कौन देखेगा? ज्ञानी पहचान पाएंगे। तुम्हारे भीतर चैन की बांसुरी बजी, कौन सुनेगा? सुनने के लिए बड़े निष्णात कान चाहिए। होना। होने की फिक्र करो। फिर तुम बाहर रसोइया हो कि राष्ट्रपति हो, कोई फर्क नहीं पड़ता। भीतर की बांसुरी बजे, तो दुर्घटना से मुक्त होओगे। फिर बाहर कुछ भी करो-कुछ तो करना ही होगा। बाहर के करने को इतना मूल्य ही मत दो। उसका कोई मूल्य भी नहीं है। अ करो, कि ब करो, कि स करो, अंततः बराबर है, मौत सब छीन लेगी। हां, भीतर कुछ है जो मौत न छीन पाएगी। कुछ भीतर का बनाओ। बाहर का दूसरे भी मिटा सकते हैं। बाहर का दूसरे नष्ट कर सकते हैं। भीतर की ही मालकियत पूरी है। ___ इसलिए तो हम संन्यासी को स्वामी कहते हैं। वही एकमात्र मालिक है। क्योंकि वह कुछ भीतर कमा रहा है, जिसे कोई छीन न सकेगा, जिसे कोई मिटा न सकेगा। वह एक ऐसा चित्र बना रहा है, सदियां बीत जाएंगी जिसके रंग फीके न होंगे। क्योंकि रंगों का उसने उपयोग ही नहीं किया, जो फीके हो जाएं। उसने एक ऐसा गीत 46
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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