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परमात्मा अपनी ओर आने का ही ढंग
गाया है, जो कभी बासा न होगा। क्योंकि उसने उन.शब्दों का उपयोग ही नहीं किया जो बासे पड़ जाएं। उसने शून्य से गाया है। उसने अरूप में रंग भरा है। उसने निराकार को पकड़ा है। .
भीतर चलो। दुर्घटना से बचना है तो भीतर चलो। दुर्घटना से बचने का यह . अर्थ नहीं है कि तुम बाहर बदलाहट करो, कि चलो अब दुकान करते थे तेल की, अब तेल की न करेंगे कपड़े की करेंगे, कि सोने-चांदी की करेंगे। दुकानें सब दुकानें हैं। कपड़े की हों, तेल की हों, सोने-चांदी की हों-सब कचरा है।
बाहर जो है, उसका कोई आत्यंतिक मूल्य नहीं है। तुम भीतर उतरो। तुम भीतर का मार्ग पकड़ो। बाहर के उलझाव से थोड़ा समय निकालकर भीतर डूबो। और मैं तुमसे कहता हूं, तुम्हारे पास जितनी साधारण जिंदगी हो उतनी ही सुविधा है भीतर जाने की। तुम उसका लाभ उठा लेना। ज्यादा धन हो, भीतर जाना मुश्किल! ज्यादा पद हो, भीतर जाना मुश्किल! हजार उपद्रव हैं, जाल-जंजाल हैं। बाहर कुछ ज्यादा उपद्रव न हो, थोड़ा-बहुत काम-धाम हो, भीतर जाने की सुविधा, अवकाश बहुत। गरीब अगर थोड़ा सा समझदार हो, तो अमीर से ज्यादा अमीर हो सकता है। __ लेकिन हालतें उलटी हैं। यहां अमीर भी नासमझ हैं। वे गरीब से भी ज्यादा गरीब हो जाते हैं। तुम अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य बना सकते हो। कीमिया तुम्हारे हाथ में है, उपयोग करो। लेकिन तुम अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य नहीं बनाते। तुम अपने सौभाग्य को भी दुर्भाग्य की तरह देखते हो।
अब स्त्रियां हैं सारी दुनिया में यह प्रश्न स्त्री का है-सारी दुनिया में स्त्रियां कोशिश कर रही हैं कि पुरुषों के साथ दौड़ में कैसे उतर जाएं। क्योंकि पुरुष अधिकारी हैं, पदों पर हैं, धन कमा रहे हैं, प्रतिष्ठा है, यह है, वह है, स्त्रियों को भी दौड़ पड़ी है। उस दौड़ में वे और भी दुर्घटनाग्रस्त हो जाएंगी। उनको एक मौका था, घर की एक छाया थी, चुप्पी के साधन थे-बच्चे स्कूल जा चुके, पति दुकान जा चुका, संसार समाप्त हुआ-थोड़ी देर अपने में डूबने का उपाय था। उसको खोने को स्त्रियां बड़ी आतुर हैं। उनको भी दफ्तर जाना है, उनको भी कशमकश करनी है, बाजार में खड़े होकर धक्का-मुक्की देने हैं। जब तक वे भी पुरुष की तरह ही पसीने से तर न हो जाएंगी और पुरुष की तरह ही बेचैन और परेशान और विक्षिप्त न होने लगेंगी, तब तक उन्हें चैन नहीं। क्योंकि स्त्री को भी समान होना है! ___ हम सौभाग्य को भी दुर्भाग्य में बदल लेते हैं। चाहिए तो यह कि हम दुर्भाग्य को भी सौभाग्य में बदल लें। __ चीन में एक बहुत बड़ा फकीर हुआ। वह अपने गुरु के पास गया तो गुरु ने उससे पूछा कि तू सच में संन्यासी हो जाना चाहता है कि संन्यासी दिखना चाहता है? उसने कहा कि जब संन्यासी ही.होने आया तो दिखने का क्या करूंगा? होना चाहता हूं। तो गुरु ने कहा, फिर ऐसा कर, यह अपनी आखिरी मुलाकात हुई। पांच
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