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परमात्मा अपनी ओर आने का ही ढंग
और अर्थ ले लेते हो।
जैसे मैंने कल कहा कि जीवन एक दुर्घटना नहीं होनी चाहिए। जीवन में एक दिशा हो। जीवन में एक तारतम्य हो। जीवन में एक श्रृंखला हो। तुम ऐसे ही हवा के थपेड़ों पर यहां-वहां न चलते रहो-कुछ हो गया, हो गया; नहीं हुआ, नहीं हुआ-भीड़ के धक्के तुम्हें कहीं न ले जाएं। तुमसे कोई पूछे तो तुम कह सको कि तुम जा रहे हो। कभी तुमने भीड़ में देखा, बड़ी भीड़ जा रही हो तो तुम चलने लगते हो। फिर ऐसी हालत हो जाती है कि रुकना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि भीड़ इतनी तेजी से चल रही है, तुमको भी चलना पड़ता है, नहीं तो गिर पड़ोगे। कुंभ के मेले में अनेक लोग मरे। वे भीड़ के साथ घसिट गए। रुक न सके।
कभी बड़ी भीड़ में चलकर देखो तो तुमको पता चलेगा कि फिर तुम नहीं चलते, भीड़ चलती है। तुम भीड़ के द्वारा चलाए जाते हो। भीड़ अगर पूरब जा रही है, तो तुम पश्चिम नहीं जा सकते, क्योंकि झंझट खड़ी होगी। भीड़ से टकरा जाओगे, मौत बन जाएगी। मरोगे, दब जाओगे। भीड़ के साथ ही जाना पड़ता है।
दुर्घटना से मेरा अर्थ है कि तुम्हारा जीवन ऐसा न हो कि तुमसे कोई पूछे कहां जा रहे हो, और तुम उत्तर न दे पाओ। तुम्हारा जीवन ऐसा न हो कि कोई तुमसे पूछे तुम कौन हो, और तुम निरुत्तर खड़े रह जाओ। कोई तुमसे पूछे कि क्या तुम्हारी नियति है, क्या पाना चाहा था, कौन से फूल खिलाने चाहे थे, कौन से तारे जलाना चाहे थे, और तुम कुछ भी जवाब न दे सको, तुम्हारी आंखें सूनी पथरीली रह जाएं। दुर्घटना का अर्थ यह है कि तुम निरुत्तर हो।
उत्तर खोजो। उत्तर खोजने का अर्थ है, थोड़ा अपने भीतर चलो। थोड़ा भीड़ की तरफ आंख कम करो, थोड़े अपने भीतर जाओ। क्योंकि भीतर कोई है तुम्हारे, जहां सब उत्तर है। जहां तुम्हारी नियति छिपी है। जहां बीज है, जो कमल बनेगा। जहां संभावना है, जो सत्य बनेगी। भीतर चलो। ___ दुर्घटना का अर्थ है, तुम बाहर ही बाहर देखकर अब तक जीए हो। दूसरों को देखकर जीए हो, इसलिए भटक गए हो। अब अपने को देखकर जीओ।
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि तुम्हें कुछ करने में समर्थ होना चाहिए।
प्रश्न पूछा है, 'कई दिनों से मुझे यही लग रहा है कि मेरा जीवन एक दुर्घटना है। कुछ भी करने में अपने को असमर्थ पाती हूं।'
करने का कोई सवाल नहीं है। क्या करना है? क्या करके तुम्हें लगेगा कि समर्थ हो गयी? धन कमाओ, पद कमाओ, प्रतिष्ठा पा लो, राष्ट्रपति हो जाओ, प्रधानमंत्री हो जाओ-क्या करके लगेगा कि समर्थ हो गयी? करने का कोई सवाल ही नहीं है, सब करना दुर्घटना में ले जाएगा। तुम कुछ भी करो, राष्ट्रपति हो जाओ कि घर में भोजन बनाओ, दोनों हालत में दुर्घटना रहेगी।
राष्ट्रपतियों को तुम यह मत समझना कि भीड़ के बाहर हो गए हैं। भीड़ के आगे
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