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एस धम्मो सनंतनो
प्रगट करो। किसी पर प्रगट करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उससे तो जाल बढ़ता है, श्रृंखला बनती है। पत्नी पर प्रगट किया, पति पर प्रगट किया, बेटे पर प्रगट किया, उससे कोई हल नहीं होता। क्योंकि दूसरा जवाब देगा। आज नहीं देगा, कल देगा, परसों देगा। बच्चा अभी छोटा है, तुम जब बूढ़े हो जाओगे तब देगा। लेकिन श्रंखला जारी रहेगी। पत्नी आज कुछ न बोलेगी, कल ठीक अवसर की तलाश में रहेगी, तब देगी। यह तो अंत न होगा। __इसे तुम अकेले में ही करो, शून्य में करो, ताकि इसका अंत हो जाए। और तुम अपने क्रोध को इतनी प्रगाढ़ता से देख लो कि उसका कोई कोना-कांतर भी तुम्हारे भीतर दबा न रह जाए।
तुम चकित हो जाओगे, उसे देखते-देखते ही क्रोध विलीन हो जाएगा। और एक गहन शांति भीतर उतर आएगी, जैसे तूफान के बाद सब शांत हो जाता है। उस शांति के क्षण को, उसके स्वाद को बुद्धत्व कहो। वह धीरे-धीरे बढ़ता जाएगा।
ऐसा तुम प्रत्येक घटना के साथ करो। क्रोध के साथ, लोभ के साथ, काम के साथ। जीवन में जिन-जिनको तुमने अपना बंधन पाया है, जहां-जहां कारागृह अनुभव किया है, वहां-वहां प्रयोग करो। बहुत ज्यादा कारागृह नहीं हैं, बड़े थोड़े हैं, उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। फिर प्रत्येक व्यक्ति का एक बंधन सबसे ज्यादा मजबूत होता है। किसी का क्रोध, किसी का काम, किसी का लोभ। तुम अपने मूल बंधन को ठीक से पहचान लो, उसी पर तुम ठीक से प्रयोग करते जाओ। देर न लगेगी। जल्दी ही, बिना पछताए, तुम पार हो जाओगे। लेकिन पार होने का रास्ता इन रोगों का पूर्ण अनुभव है। पूर्ण अनुभव में तुम जागते हो। संबोधि घटित होती है। सम्यक-ज्ञान होता है।
तो यह मत कहो कि तुम्हारे जो छोटे-छोटे रोज अनुभव होते हैं और उनमें तुम जो सोए-सोए से कुछ निर्णय ले लेते हो कि ठीक है, अब लोभ न करेंगे, क्या सार है! इस तरह की सस्ती बातों से कुछ होगा न।
लबालब जाम फिर साकी ने वापस ले लिया मुझसे
न जाने क्या कहा मैंने न जाने क्या हुआ मुझसे बहुत बार तुम्हारे सामने प्याली आ जाती है जीवन-रस की, लेकिन लौट जाती है।
लबालब जाम फिर साकी ने वापस ले लिया मुझसे
न जाने क्या कहा मैंने न जाने क्या हुआ मुझसे । होश में रहोगे तो ही यह प्याली पी सकोगे। यह ज्ञान की, बुद्धत्व की, अमृत की प्याली बहुत बार आती है तुम्हारे सामने, यह सच है। लेकिन हर बार हट जाती है। पास आ भी नहीं पाती, बस झलक मिलती है और हट जाती है। अब झलकों से ही राजी मत रहो। अब झलक को यथार्थ बनाओ। धीरे-धीरे प्रयोग करो।
बुद्धत्व का अर्थ है : परिस्थिति से नहीं पैदा होता, मनःस्थिति से पैदा होता है।