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एस धम्मो सनंतनो
दी, जितना कि कसूर न था-तुम्हारी प्रतिमा खंडित होती है। तुम्हारा अहंकार तड़फता है। अब तो तुम दुनिया से यह न कह सकोगे कि तुम क्रोधी नहीं हो। अब तो तुमने खुद ही अपने को पकड़ लिया! किस मुंह से कहोगे? किस मुंह से दिखाओगे? अब तुम पछताते हो। यह पछतावा प्रतिमा को फिर से रंग-रोगन करने
की तरकीब है। पछताकर तुम कहते हो, देखो! क्रोध हो गया तो भी मैं आदमी बुरा नहीं हूं, पछताता हूं। क्षमा मांगते हो कि क्षमा कर दो। इस तरह तुम यह कह रहे हो कि मेरा सिंहासन से जो गिर गया अहंकार, उसे पुनः प्रतिष्ठित हो जाने दो।।
क्षमा मांग कर, पछता कर, दुखी होकर, मंदिर में जाकर, पूजा-प्रार्थना करके, उपवास करके, तुम फिर विराजमान हो जाते हो। तुम फिर कहते हो, मैं भला आदमी हो गया; धार्मिक, साधु। अब तुम फिर तैयार हो गए वहीं, जहां तुम पहले थे क्रोध के। अब तुम फिर क्रोध करोगे। अब तुम उसी जगह आ गए जहां से क्रोध पैदा हुआ था। तुम्हारा पश्चात्ताप तुम्हारे क्रोध को बचाने की तरकीब है। तुम्हारा दुख, तुम्हारी क्षमायाचना, वास्तविक नहीं है; तुम्हारे अहंकार का आभूषण है। इसीलिए तो काम नहीं पड़ता, हजार बार करते हो और व्यर्थ हो जाता है।
नहीं, इसको तुम बुद्धत्व का क्षण मत समझ लेना। बुद्धत्व के क्षण का अर्थ है-जो भी घड़ी घटी हो, उसको उसकी सर्वांगीणता में देखना। क्रोध को देखना, क्यों उठा? दूसरे पर जिम्मेवारी मत देना। क्योंकि क्रोध से दूसरे का कोई भी संबंध नहीं है। दूसरा निमित्त हो सकता है, कारण नहीं। खूटी हो सकता है, कोट नहीं। कोट तो तुम्हारा ही तुम्हें टांगना पड़ता है। दूसरे ने अवसर दिया हो, यह हो सकता है। लेकिन उस अवसर में जो प्रगट होता है, वह तुम्हारा ही अंतस्तल है। ___ ऐसा ही समझो कि कोई एक सूखे कुएं में बाल्टी डालता है, खड़खड़ाकर लौट आएगी, पानी लेकर नहीं आएगी। सूखा कुआं है, पानी आएगा कहां से? कोई बाल्टी थोड़े ही पानी ला सकती है। किसी ने तुम्हें गाली दी, अगर तुम्हारे भीतर क्रोध का कुआं सूखा है, खड़खड़ाकर गाली वापस लौट आएगी; क्रोध लेकर नहीं आएगी। पछताएगा गाली देने वाला। पीड़ित होगा, सोचेगा, क्या हुआ? चकित होगा, विश्वास न कर सकेगा। तुम उसे भी एक मौका दोगे पुनर्विचार का। वह फिर से ध्यान करे अपनी स्थिति पर, क्या कर गुजरा। तुम जैसे के तैसे रहोगे। ___हां, बाल्टी भीतर जाए, जल भरा हो, तो भरकर ले आती है। जल तो तुम्हारा है, बाल्टी किसी और की हो सकती है, यह खयाल रखना। जो क्रोध करता है, उसे गौर से देखना चाहिए कि जल सदा मेरा है, कारण मेरे भीतर है, दूसरा निमित्त है। एक। दूसरी बात, उसे देखना चाहिए कि अगर आज यह निमित्त न मिलता, तो मैं क्रोध करता या न करता? तुम चकित होओगे, अगर यह आदमी आज न मिलता तो कोई दूसरे पर तुम्हें क्रोध करना ही पड़ता। क्रोध तो तुम्हें करना पड़ता। वह तो निकास था। तुम कोई न कोई बहाना खोज लेते।