SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परमात्मा अपनी ओर आने का ही ढंग कांटे से तुम पहले भी तय कर चुके थे न चुभने की बात । कांटे को खोजता तो कोई भी नहीं। लोग फूलों को खोजते हैं और कांटा चुभता है। क्या अब तुम फूल न खोजोगे ? तुम कहते हो, अब हम क्रोध न करेंगे, लेकिन क्या अब तुम सम्मान न चाहोगे ? तुम कहते हो, अब कसम खाली कि अब क्रोध कभी भी न करेंगे, लेकिन क्या तुमने अहंकार को आज उतारकर रख दिया ? क्या इस क्षण ने तुम्हें ऐसा बोध दिया कि तुम्हारा अहंकार जल गया ? अगर अहंकार रहेगा, तो क्रोध होगा ही । अहंकार रहेगा तो क्रोध से कैसे बचोगे ? अहंकार रहेगा तो उसके घाव में पीड़ा होगी ही । जरा कोई छू देगा, हवा का झोंका आ जाएगा, किसी से घर्षण हो जाएगा, मवाद निकल आएगी। घाव तुम्हारे भीतर है। तो ऐसे तो बहुत क्षण तुम्हारे जीवन में आएंगे। कामवासना के बाद तुम्हें लगेगा कि बस ब्रह्मचर्य ही जीवन है। किसको नहीं लगता! कामी से कामी आदमी को भी ब्रह्मचर्य का सुख अनुभव होता है। कामी से कामी आदमी भी तय करता है कि बस अब बहुत हो गया, अब जागने का समय आ गया, सुबह हो गयी । क्रोधी से क्रोधी आदमी भी निर्णय लेता है कि बस अब जाकर कसम ले लेना है मंदिर में । बहुत बार ले भी लेता है। कसमें आती हैं, चली जाती हैं, कोई रेखा भी नहीं छूटती । I इसे तुम बुद्धत्व मत समझ लेना कि क्षणभर को बुद्ध हो गए। क्योंकि क्षणभर को जो बुद्ध हो गया, वह सदा को बुद्ध हो गया । बुद्धत्व का शाश्वत से कोई संबंध थोड़े ही है। क्षण ही शाश्वत है। एक क्षण को भी जो जाग गया, फिर सो न सकेगा। यह जागरण नहीं है, जागरण का धोखा है; इसी धोखे के कारण तुम अपनी नींद को और सुगम बनाए चले जाते हो। इसे जागरण तो समझना ही मत, यह नींद की दवा भला हो । इसे समझने की कोशिश करो। क्रोध हुआ, क्रोध होते से ही तुम्हारे भीतर क्या घटना घटती है, उसे थोड़ा विश्लेषण करो। तुम सदा से मानते थे कि तुम क्रोधी व्यक्ति नहीं हो। तुम बड़े सज्जन, सरलचित्त । कभी क्रोध भी करते तो दूसरों के हित में। अगर क्रोध करना भी पड़ता है, तो इसीलिए कि लोगों को सुधारना है। ऐसे तुम क्रोधी नहीं हो । प्रसंगवशात, आवश्यक मानकर, औषधि की तरह, लोगों को तुम क्रोध देते हो । बाकी क्रोधी तुम हो नहीं, क्रोधी तुम्हारा स्वभाव नहीं है। परिस्थितिवश ! मजबूरी होती है | चाहते नहीं करना, तो भी करते हो। क्योंकि न करोगे तो संसार चलेगा कैसे ? बच्चा कुछ गलती कर आया है, तो नाराज होना पड़ता है। नौकर ने कुछ भूल की है, नाराज न होओगे, सब काम-धाम रुक जाएगा। संसार चलाने के लिए क्रोध करते हो, क्रोधी तुम नहीं हो, यह तुम्हारी मान्यता है । यह तुम्हारी अपनी प्रतिमा है । फिर तुम अपने को क्रोध करते पकड़ते हो रंगे हाथ, आग-बबूला हो गए थे, भीतर आग जल गयी थी, उसमें तुमने कुछ उलटा-सीधा कर दिया, सामान तोड़ दिया, कि किसी को जरूरत से ज्यादा चोट पहुंचा दी, अनुपात से ज्यादा चोट पहुंचा 39
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy