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परमात्मा अपनी ओर आने का ही ढंग
मस्तिष्क से सोचती है, पुरुष बाएं मस्तिष्क से सोचता है। इसलिए तालमेल नहीं बैठता। जोर है स्त्री का दाएं मस्तिष्क पर, ज्यादा वजन दाएं पर पड़ रहा है। पुरुष का जोर है बाएं पर, ज्यादा वजन बाएं पर पड़ रहा है। बाएं मस्तिष्क में है तर्क, चिंतन, दर्शन, राजनीति। दाएं मस्तिष्क में है प्रेम, भक्ति, भाव, रस, नृत्य, गीत, गायन, वादन, नर्तन। अलग-अलग हैं। __और परम मुक्त वही है जिसने दोनों का रस पूरा-पूरा पीया। जिसके भीतर दाएं
और बाएं का फासला न रहा। जिसने दोनों पंख एक साथ तौल लिए। जिसके दोनों पंख एक साथ तुल गए। जिसने दोनों पंखों पर एक सा बल डाल दिया और दोनों पंखों को अपना लिया। जिसका अपना कोई पंख न रहा–दोनों ही अपने हो गए।
इसलिए तुम मेरे साथ अड़चन पाओगे। नारद के साथ सुविधा है। वह दायां मस्तिष्क है उनका जोर-भक्ति, भाव, रस, गीत, भजन, कीर्तन, आंसू, रुदन, रोमांच-वह सब स्त्रैण-मस्तिष्क के लक्षण हैं। इसलिए भक्त में स्त्रैण-गुण प्रगट होने लगते हैं। भक्त स्त्रैण होने लगता है। उसमें से पुरुष-गुण खो जाते हैं। पुरुष का पौरुष-भाव खो जाता है, कोमल हो जाता है। छोटे बच्चों जैसा हो जाता है, या स्त्रियों जैसा हो जाता है। उसके रंग-ढंग में, उठने-बैठने में भी स्त्रैणता आ जाती है। एक कौमल्य का प्रादुर्भाव होता है। सौंदर्य आ जाता है। ___ फिर चिंतक है, ज्ञानी है, योगी है, उसका पौरुष-भाव और भी गहरा होकर प्रगट होता है। उसके चेहरे पर कोमलता खो जाती है। तर्क की सुस्पष्ट रेखाएं आ जाती हैं। रोमांच की बात ही बेहूदी मालूम पड़ेगी चिंतक को, यह क्या बचकानी बात हुई! सोचने का रोमांच से क्या संबंध है? क्या रोओं के कंपित हो जाने से चिंतन करोगे? यह तो चिंतन में बाधा हो जाएगी। रोमांच करके कौन सोच पाया? आंसू! बात ही बड़ी दूर की मालूम पड़ती है। चिंतन से आंसुओं का क्या लेना-देना है? सोचना है, तो आंखें सूखी और साफ चाहिए। गीली आंखें सोच न पाएंगी। सोचना कमजोर हो जाएगा। भाव प्रविष्ट हो जाएगा। भाव डगमगा देगा। जो सोचना था, तर्कयुक्त होना था, वहां अगर भावयुक्त हो गए तो करुणा, प्रेम, दया और हजार चीजें प्रवेश कर जाएंगी। न्याय पूरा न हो पाएगा।
चिंतक कोमल नहीं हो पाता, कठोर हो जाता है। वैज्ञानिक के चेहरे पर तर्कसरणी लिख जाती है। योगी पानी की तरह तरल नहीं हो जाता, पत्थर की तरह सुदृढ़ हो जाता है। डांवाडोल करना उसे मुश्किल है। ज्ञानी एक गहरी उदासीनता, उपेक्षा से भर जाता है।
कहां रोमांच! रोमांच का अर्थ है, उपेक्षा बिलकुल नहीं। जरा सी घटना घटती है और रोमांच हो जाता है। एक पक्षी भी गिर पड़े, तो भक्त रोने लगेगा। एक फूल टूट जाए, तो भक्त की आंखें गीली हो जाएंगी। ज्ञानी, सारा संसार भी विचलित हो जाए, तो अडिग, अकंप, तटस्थ, शून्य बैठा रहेगा। जैसे कुछ भी न हुआ।
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