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एस धम्मो सनंतनो
बात साफ होनी चाहिए कि मैं ठीक हं। तो तुम भक्ति के पक्ष में खड़े हो जाते हो। तुम सोचते हो, भक्ति के पक्ष में खड़े हुए। मैं जैसा देखता हूं वह यह कि तुमने भक्ति को अपने पक्ष में खड़ा कर लिया।
इसलिए तुम्हें मैं टिकने न दूंगा। जब तक तुम हो, तुम्हें टिकने न दूंगा। जिस दिन पाऊंगा कि तुम नहीं हो, टिकने वाला ही न बचा, तुम तरल हो गए, उस दिन फिर तुम्हें हिलाने की कोई जरूरत नहीं। तुम स्वयं ही तरल हो। अभी तुम ठोस हो बहुत, बहुत चोटों की जरूरत है।
इसलिए निरंतर कभी ज्ञान की बात करता हूं, कभी योग की, कभी भक्ति की। और जब तुम मुझे भक्ति पर बोलते सुनोगे, तो तुम्हारा मन भक्ति से राजी होने लगेगा, बात जंचेगी। मगर मैं तुम्हें ज्यादा जंचने न दूंगा। इसके पहले कि ज्यादा जंच जाए और तुम कोई पक्षपात बना लो, तुम्हारी जड़ों को उखाड़ ही देना पड़ेगा। ___मैं चाहता हूं, तुम जमीन में गड़े नहीं, आकाश में उड़े हुए रहो। मैं चाहता हूं, तुम्हें विपरीत और अतियां दिखायी ही न पड़ें। तुम इतनी सरलता से अतियों में डोलने लगो कि तुम्हारे डोलने में अतियां समाहित हो जाएं।
एक पंख के साथ, कहो कब
विहग भला उड़ सका गगन में? मैं तुम्हें आकाश की यात्रा पर ले चल रहा हूं। तुम्हारी जिद है एक पंख से उड़ने की, और मैं कहता हूं
एक पंख के साथ, कहो कब
विहग भला उड़ सका गगन में? कौन पक्षी उड़ सका है एक पंख के साथ? पक्षियों को पंखों के साथ पक्षपात नहीं है, अन्यथा कभी का उड़ना भूल गए होते। कभी के जमीन में गिर पड़े होते। धूल-धूसरित हो गए होते। कभी का आकाश से संबंध टूट गया होता। दोनों पंखों को लिए उड़ते हैं। और कभी उनके मन में दुविधा भी नहीं आती कि यह कैसा विरोधाभास? दो पंख! दोनों विपरीत दिशाओं में फैले हुए! लेकिन उन्हीं दोनों विपरीत दिशाओं में फैले पंखों पर पक्षी आकाश में अपने को सम्हाल लेता है, तौल लेता है। तुम्हें भी मैं चाहूंगा कि जहां-जहां विपरीत हो, वहां-वहां विरोध न दिखे, पंख दिखायी पड़ें।
इसे थोड़ा समझना। दो पैर हैं, तो तुम चल पाते हो। दो हाथ हैं, तो तुम कुछ कर पाते हो। तुम्हें शायद भीतर का पता न हो, तुम्हारे पास दो मस्तिष्क हैं, इसलिए तुम सोच पाते हो। एक मस्तिष्क हो तो तुम सोच न पाओगे। तुम्हारे भीतर तुम्हारा सिर भी दो हिस्सों में बंटा है, दो पंखों की तरह। तुम्हारा बायां और दायां मस्तिष्क अलग-अलग हैं; दोनों बीच में बड़े पतले सेतु से जुड़े हैं। इसलिए तुम सोच पाते हो। और उन्हीं दो मस्तिष्कों के कारण स्त्री और पुरुष में भेद है। क्योंकि स्त्री दाएं
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